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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जनप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः पाक करें और फिर उसमेंसे चमेलीके पत्तोंको मनुष्यलालया घृष्टा ततो नेत्रं तयाअयेत् । निकाल कर उनका रस निकालें और उसे कांसोके सर्पदष्टविषं जित्वा सञ्जीवयति मानवम् ॥ पात्रमें डाल कर उसमें समुद्र फलको घिसें । जमाल गोटेकी गिरीको नीबूके रसकी २१ इसे आंखोंमें आंजनेसे आंखका फरकना, भावना दे कर बत्तियां बना लें। आंखोंकी खुजली और अधिमन्थादि रोग नष्ट इसे मनुष्यके थूकमें घिस कर आंखमें लगानेहोते हैं। से सांपका विष उतर जाता है। (६८७७) विडङ्गाद्यञ्जनम् (६८८०) विचिकानाशनगुटिका ( व. से. । बालरोगा.) ( यो. चि. म. । अ. ३) कृमिघ्नालशिलादावर्वीलाक्षागैरिककाजिकैः। फलत्रिकं व्योषकरअबीज चूर्णाअनं कुकूणे स्याच्छिशूनां पोथकीषु च ॥ रसं तथा दाडिममातुलिङ्गयोः। बायबिडंग, हरताल, मनसिल, दारुहल्दी, निशायुगं पिष्य कृता च वर्तिलाख और गेरु; इनके समान भाग मिश्रित स्तदञ्जनं हन्ति विषूचिकां च ॥ चूर्णको कांजीमें घोटें और सूख जाने पर बारीक हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल, करके रक्खें। करंजुवेकी गिरी, हल्दी और दारु हल्दी; इनका ___इसे आंखोंमें लगानेसे बालकोंका कुकूणक चूर्ण तथा अनार और बिजौ रे नोबूका रस समान और पोथकी नामक नेत्र रोग नष्ट होता है। भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके बत्तियां (६८७८) विषमज्वरान्तकाञ्जनम् । बना लें। .. (र. प्र. सु. । अ. ८) इसका अंजन लगानेसे विषूचिकाका नाश तालकं निम्बतैलेन मर्दितं वटकीकृतम् । । होता है। अअने क्रियमाणे च ज्वरः शान्तिमुपैति हि ॥ वृहचन्द्रोदयावर्तिः हरतालको नीमके तेलमें घोट कर गोली (भै. र. । नेत्र रोगाः) बना लें। प्र. सं. १८५८ चन्द्रोदया वर्तिः (लघु) इसका अंजन लगानेसे ज्वर शान्त होता है। देखिये ।। (६८७९) विषहरिवर्तिः (६८८१) वैदेहिवर्तिः (रसे. चि. म. । अ. ९). (वृ. यो. त. । त. १३१) जयपालभवां मज्जां भावयेन्निम्बुकद्रवैः। कतकं चन्दनं लाक्षा मरिचं मधुकोत्पलम् । एकविंशतिवारं तु ततो वत्ति प्रकल्पयेत् ॥ | तुत्थाक्षामलकाबीजं मनोहा सुमनः सिता ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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