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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ६९२ ण्डकी नाल से उसका धुवां पियें। धूत्रपान करते समय चिलम के मुखको भली भांति ढक देना चाहिये | यह धूम्रपान भोजनके पश्चात् करना चाहिये । - भैषज्य रत्नाकरः भारत इससे खांसी तुरन्त नष्ट हो जाती है । यह एक सिद्ध प्रयोग है । धूम्रपान करनेके पश्चात् पान खाना चाहिये पथ्य- दूध भात । .(६८७४) वचाद्यञ्जनम् ( व. से. । विषरोगा . ) वचोषण शिलादारुनक्तावद्विनिशाञ्जनम् । शिरीषपिप्पलीयुक्तं गरदोषनिसूदनम् || इति वकारादिधूम्रप्रकरणम् 三三 अथ वकाराद्यञ्जनप्रकरणम् बच, काली मिर्च, मनसिल, देवदारु, करञ्जबीज, हल्दी, दारूहल्दी, रसौत सिरसके बीज और पीपल; इनका चूर्ण समान भाग ले कर सबको एकत्र घोट कर बारीक करें । इसे आंख में लगानेसे गर विष नष्ट होता है । (६८७५) वदक्षीराद्यञ्जनम् ( व. से. । नेत्ररोगा. ; शा. स. । ख. ३ अ. १३ ; वृ. यो. त. । त. १३१ ; वृ. नि. र. ; यो. र. | नेत्र. ) क्षीरेण संयुक्तो मुख्यः कर्पूरजः कणः । क्षिप्रमञ्जनतो हन्ति कुसुमं च द्विमासिकम् ॥ (६८७३) विदुलीदलयोगः (वै. म. र. । पटल ३ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विदुलीदल हरितालव्योषशिलाः केशराजरसपिष्टाः । गुटिकीकृता निहन्युः कासरुजं धूमपानेन || दुर्गन्धित खैर के पत्ते, हरताल, सोंठ, मिर्च, पीपल और मनसिलका चूर्ण १-१ भाग ले कर सबको भंगरेके रसमें पीस कर गोलियां बना लें | इनका धूमपान करने से खांसी नष्ट होती है । [वकारादि करके चूर्ण को बड़के दूध में घोट कर अंजन बनावें । इसे आंख में लगानेसे २ मासका फूला शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । (६८७६) वातारिपनयोगः ( यो त । त. ७१ ) वातापित्रे पुटपाचितानां ri दलानां वरमल्लिकायाः । सम्मर्दयेत्सिन्धुफलेन कांस्ये तेनाञ्जनेनाञ्जितलोचनस्य ॥ सोऽक्षिनिष्पन्दमकाण्डकण्डूमथाधिमन्थादिगदान्निहन्ति ॥ For Private And Personal Use Only चमेली के पत्तोंको अरण्डके पत्तों में लपेट कर उस पर मिट्टीका एक अंगुल मोटा लेप करके पुट.
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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