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धूपपकरणम् ]
चतुर्थों भागः
६९१
अथ वकारादिधूपप्रकरणम् (६८६९) वचादिधूपः
वेणुत्वगादिधूपः (वृ. नि. र. । विषम ज्वरा. ; ग. नि.) (यो. र. । मसूरिका. ; वृ. यो. त. । त. १२६)
प्र. सं. ५४३१ “ मसूरिकान्तक धूपः " वचाहरीतकीसर्पिधूपः स्याद्विषमज्वरे । देखिये। बच और हरके चूर्णको घीमें मिला कर धूप
(६८७१) व्रणधूपनयोगाः
(ग. नि. । व्रणशोथा. ४) देनेसे विषम ज्वरमें लाभ पहुंचता है।
। वाताभिभूतान् साम्रावान् धृपयेदुनवेदनान् । (६८७०) विशालादिधूपः यवार्जभूर्जमदनश्रीवेष्टकसुराहयैः ॥
| श्रीवासगुग्गुल्वगुरुशालनिर्यासधूपिताः। (यो. र. । कृम्य.)
कठिनत्वं व्रणा यान्ति नश्यन्त्यास्राववेदनाः ।। विशालायाः फलं पक्वं तप्तलोहे परिक्षिपेत् ।। जौ, जंगली तुलसी, भोजपत्र, मैनफल, तख़मो दन्तलग्नश्चेत्कीटानां पातनः परः॥ श्रीवेष्ट, देवदोरु, श्रीवास, गूगल, अगर और राल
समान भाग ले कर सबको एकत्र पीस लें। इन्द्रायणके पक्के फलके चूर्णको तप्त लोहे पर
वातदोष प्रधान तथा स्राव और तीव्र वेदना डालनेसे जो धुवां निकले वह कृमि वाले दांतको वाले ब्रणोंको इसकी धूनी देनेसे वेदना और स्राव लगानेसे कृमि निकल जाते हैं।
नष्ट हो कर ब्रण शुष्क हो जाते हैं। इति वकारादिधूपमकरणम् ॥
अथ वकारादिधूम्रप्रकरणम् (६८७२) वारुणीपत्रधूमः ताम्बूलपूरितमुखं पथ्यं क्षीरोदनं हितम् ॥ ( वृ. नि. र. । कासा.)
तत्क्षणान्नाशयेत्क्रास सिद्ध योग उदाहृतः ॥ उत्तरावारुणिपत्रं शालितण्डुलतालकम् । इन्द्रायणके पत्ते, शाली चावल और हरताल सम्पेष्य गुटिका कार्या बदराण्डप्रमाणका ॥ समान भाग ले कर सबको एकत्र पीस कर बेरकी मुखीतण्डुलपिष्टेन कर्तव्या छिद्रसंयुता। गुठलीके समान गोलियां बना लें। दीप्ताङ्गारे वटी क्षिप्त्वा मुखमाच्छाद्य यत्नतः॥ चावलोंकी पिट्टीकी चिलम बनाकर उसमें धूममेरण्डनालेन पिबेभुक्तोत्तरं शनैः। अग्नि रख कर उस पर एक गोली रक्खें और अर
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