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(६८५४) वार्ताकमूलादिलेप: ( यो. र. । स्नायुक. ) वार्ताकमूलं मूत्र: पत्रैर्वाऽश्वत्थजैश्च वा । सुतप्तैर्बन्धच्छीघ्रं शमयेत्स्नायुकं गदम् ॥
भारत-वैषज्य -:
बैंगनकी जड़को मनुष्य के मूत्र में पीस कर गरम करके स्नायुक (नहरवे ) पर रक्खें और ऊपर से पीपलका पत्ता रख कर बांध दें ।
इस उपचार से नहरुवा शीघ्र ही नष्ट हो जाता है ।
(६८५५) वासादिलेप: (१) ( वृ. मा. । मेदोवृद्धय ; यो. र. ; व. से. । उदरा ; वृ. नि. र. । मेदोरोगा . ) वासादलरसो लेपाच्छ्ङ्कचूर्णेन संयुतः । faravrrit aise गात्र दौर्गन्ध्यनाशनः ॥
बासे ( अडूसे ) के पत्तोंके रसमें शंखका बारीक चूर्ण मिला कर लेप करनेसे अथवा बेलके पत्तोंका लेप करनेसे शरीरको दुर्गन्ध नष्ट हो जाती है ।
(६८५६) वासादिलेप: (२) ( वृ. मा. । कुष्ठा. )
कोमलसिंहास्यदलं सनिशं
सुरभीजलेन सम्पिष्टम् । दिवसत्रयेण नियतं क्षपयति कच्छू विलेपनतः ॥
बासे (अडूसे) के कोमल पत्ते और हल्दीका चूर्ण समान भाग ले कर दोनोंको गोमूत्र में पीसकर
[ वकारादि
लेप करनेसे ३ दिनमें कच्छू ( खुजली भेद ) का नाश हो जाता है ।
- रत्नाकरः
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(६८५७) विकङ्कतादिलेपः
( वृ. मा. । गलगण्डा . ; च. द. । गलगण्डा. ४० ) विकङ्कतारग्वधकाकणती काकादनी तापस वृक्षमूलैः । आलेपयेदेनमलाम्बुभार्गी
कर कालामदनैश्च विद्वान् ॥ विकङ्कत (कंटाई), अमलतास, काकणन्ती (गुंजा) की जड़, काकादनी ( सफेद गुंजा ) की जड़, इंगुदीकी जड़, कड़वी तुंबी, भरंगी, करञ्जकी जड़, मजीठ और मैनफलका चूर्ण समान भाग ले कर सबको बारीक पीस कर कफज ग्रन्थि पर लेप करना चाहिये ।
(६८५८) विडङ्गादिलेपः
(ग. नि. । कुष्ठा. ३६; वृ. नि. र. । त्वग्दोषा. ) विडङ्गैडगजाकुष्ठनिशा सिन्धूत्थसर्षपैः । धान्याम्लपिष्टैर्लेपोऽयं दद्दू कुष्ठविनाशनः ॥
ले कर
बायबिडंग, पमाड़ के बीज, कूठ, हल्दी, सेंधानमक और सरसों का चूर्ण, समान भाग सबको कांजीमें पीस कर लेप करनेसे दाद नष्ट हो जाता है ।
(६८५९) विदार्यादिलेप:
( वृ. मा. । ज्वरा. ; ग. नि. ; हा. सं. । स्था. ३ अ. २; वृ. नि. र. । विषम ज्वरा. ) विदारी दाडिमं लोध्रं दधित्थं बीजपूरकम् । एभिः प्रदिह्यान्मूर्धानं वृड्दाहार्तस्य देहिनः ॥
विदारीकन्द, अनार दाना, लोध, कैथ और बिजौरे नीबूका गूदा समान भाग ले कर सबको
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