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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः । .. (६८४८) वरुणादिलेपः (६८५१) वसुकादिलेपः ( भा. प्र. म. खं. २.। क्षुद्र.) (व. से. । व्रण.) व्यङ्गहवरुणत्वस्यादजामूत्रेण पेषिता। वसुकार्जुनविक्रान्ता मांसीलोधनिशायुगैः। - तिलवहिशिखारिष्टैलेंपो दुष्टत्रणापहः ॥ बरनेकी छालको बकरीके मूत्रमें पीस पर लेप |... काला अगर, अर्जुनकी छाल, अपराजिता करनेसे व्यङ्ग (चेहरेकी झांई) का नाश होता है । | ( कोयल ), जटामांसी, लोध, हल्दी, दारुहल्दी, (६८४९) वल्मीकमृत्तिकायुद्वर्त्तनम् तिल, मोरशिखा और नीमके पत्ते समान भाग ले कर पानीके साथ पीस कर लेप करनेसे दुष्ट व्रण ( रा. मा. । वाता. २१) . नष्ट होता है। वल्मीकमृन्मूलकबीजयुक्ता (६८५२) वातनाशकलेपः तुरङ्गगन्धा सहिता प्रलेपात् । (वृ. मा. । वाताधि.) उन्मर्दनेनापि च घोरमूरु- | शतपुष्पा देवदारुनागरैरण्डसैन्धवैः। स्तम्भं विनाशं नयति प्रसह्य ॥ अम्लपिष्टैः समैः कोणैर्लेपो वातातिनाशनः।। बमीकी मिट्टी, मूलीके बीज और असगन्धका सोया, देवदारु, सांठ, अरण्डमूल और सेंधाचूर्ण समान भाग ले कर सबको पानीमें पीस कर नमकका चूर्ण समान भाग ले कर सबको कांजीमें लेप करने या इस चूर्णका मर्दन करनेसे धोर ऊरु पीस कर मन्दोष्ण करके लेप करनेसे वातजनित स्तम्भ रोग भी अवश्य नष्ट हो जाता है। पीड़ा नष्ट होती है। (६८५०) वल्मीकादिलेपः (६८५३) वायस्यादिगुटिका .. (यो. र. । उदावर्ता.) | (पृ. मा. । कुष्ठा. ; च. द. ; ग. नि. । __कुष्ठा. ३६ ) . वल्मीकमृत्करअस्य त्वङ्मूलफलपल्लवम् । अस्य त्वङ्मूलफलपल्लवम् । वायस्येडगजाकुष्ठकृष्णाभिर्गुटिका कृता । सिद्धार्थ चेति पिष्टानां मूत्रेणाऽऽलेपनं हितम् ॥ वस्तमत्रेण संपिष्टा प्रलेपाच्छित्रनाशिनी ॥ उदावर्तेषु सर्वेषु सम्यग्वातानुलोमनम् ।। ___मकोय, पंमाड़के बीज, कूठ और पीपलका ___ बमीको मिट्टी, करञ्जवेकी छाल, मूल, फल| चूर्ण समान भाग ले कर. सबको बकरीके मूत्रमें और पत्ते तथा सफेद सरसों समान भाग ले कर | पीस कर गोलियां बना लें। सबको गोमूत्रमें पीस कर पेट पर लेप करनेसे वायु इन्हें बकरीके मूत्रमें घिस कर लगानेसे श्वित्र अनुलोम हो कर उदावर्त नष्ट हो जाता है। । ( श्वेत कुष्ठ ) नष्ट हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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