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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लेपप्रकरणम् ] पीस कर शिर पर ( तालु पर ) लेप करनेसे दाह और तृषाका नाश होता है । चतुर्थी भागः (६८६० ) विशाला दिलेपः ( व. से. ; बृ. नि. र. । स्त्रीरोगा . ) लेपो विशालामूलस्य हन्ति पीडां स्तनोत्थिताम् निशावल्कलकल्काभ्यां लेपः प्रोक्तः स्तना तिहा ॥ - इन्द्रायणकी जड़को पानीमें पीस कर लेप करनेसे या हल्दी और दालचीनी ( पाठान्तर के अनुसार धतूरे के बीज ) को पीस कर लेप करनेसे स्तनकी पीड़ा नष्ट होती है । (६८६१) विषादिलेप: (१) ( ग. नि. । कुष्टा. ३६ ) विषधूमव्योपवहिरजनी सर्षपैः ससिन्धृत्यैः । क्षारद्वयगोमूत्रैः प्रसुप्तिकुष्ठापहो लेपः ॥ मीठा विष (बछनाग), गृहधूम, सांठ, मिर्च, पीपल, चीता, हल्दी, सरसों, सेंधा नमक, जवाखार और सज्जीखारका चूर्ण समान भाग ले कर सबको गोमूत्र में पीसकर लेप करनेसे प्रसुप्ति कुष्ठ नष्ट होता है । (६८६२) विषादिलेप: (२) ( ग. नि. । कुष्ठा. ३६ ) विपवरुणहरिद्राचित्रकागारधूमं दहनमरिचवः क्षीरमर्कस्नुहीभ्याम् । दहति पतति मात्रं कुष्ठजातीरशेषाः कुलिशमिव सरोषाच्छक्र हस्ताद्विमुक्तम् ।। १. निशोकनककल्का भ्यामिति पाठान्तरम् । ८७ ६८९ मीठा विष (बछनाग), बरनेकी छाल, हल्दी, चीता, गृहधूम, भिलावा, काली मिर्च और दूर्वा, इनका चूर्ण तथा आक और सेहुंड (सेंड - थोहर) का दूध समान भाग ले कर सबको एकत्र पीस लें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसका लेप करने से समस्त प्रकार के कुष्ठ नष्ट होते हैं । (६८६३) वृश्चिकदंशहरो लेपः ( यो. त. । त. ७८ ) अजाक्षीरेण सम्पिष्टा शिरीषफलमिश्रिता । उपकुल्या विषं हन्ति वृश्चिकस्य प्रलेपतः ॥ पीपल और सिरस के बीजोंको बकरीके दूधमें पीस कर लेप करनेसे बिच्छूका विष नष्ट होता है । (६८६४) वृषमूलादियोगः ( वै. मृ. | अल. ४ ) वृषस्य मूलं यदि नाभि योनौ मलेपितं स्त्री झटिति प्रसूते । तथा कटिस्थः कदली सुकन्दो वेगात्प्रसूतिं कुरुतेङ्गनानाम् || बासे (असे) की जड़ को पीस कर नाभि और योनि पर लेप करनेसे प्रसव शीघ्र हो जाता है । hot जड़ को कमर में बांधने से भी प्रसव में विलम्ब नहीं होता | (६८६५) वेतसाद्यलेपः (व. से. । शोथा. ) सवेतसाः क्षीरवतां द्रुमाणां त्वचः समञ्जिष्टलतामृणालाः । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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