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अवलेहप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
सेांठ, मिर्च, पीपल, पीपलामूल, हर्र, चीता, आधा भाग अम्लबेतका चूर्ण ले कर समस्त जीरा, काला जीरा, अजवायन, अजमोद (इसके पदार्थोको एकत्र मिला कर कूटें । स्थानमें भी अजवायन), बच, बाबची, सेंधा नमक, इसके सेवनसे सन्धि, अस्थि और मजागत काला नमक, बिड नमक और जवाखार समान आमवात तथा भग्नरोगका नाश और जठराग्निकी भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
वृद्धि होती है। तदनन्तर इस सबके बराबर शुद्ध गाल और (मात्रा-३ माशे । )
इति वकारादिगुग्गुलुप्रकरणम्
अथ वकाराद्यवलहप्रकरणम् वङ्गावलेहः
बड़, सुगन्धबाला ( अथवा छोटी इलायची) ( रसें. सा. सं. । प्रमेहा.) हर्र, पीपल और मुलैठीका चूर्ण समान भाग ले कर रस प्रकरण में देखिये।
सबको शहदमें मिला कर अवलेह बनावें । (६६९७) वटाधवलेहः (१)
यह अवलेह तृषाको नष्ट करता है। (हा. सं. । स्था. ३ अ. १०)
(मात्रा-चूर्ण ३ माशे । शहद १ तोला ।) वटप्रवालान् ककुभस्य नीप
जम्ब्वाम्रकाणां खदिरस्य वापि । (६६९९) वत्सकावलेहः यथा प्रपन्नो मधुनावलेह
(हा. सं. । स्था. ३ अ. ३) आस्यास्रजं वारयते क्षणेन ॥ ___बड़, अर्जुन, कदम्ब, जामन, आम और खैर- वत्सकातिविपान गराभया मेंसे किसी एककी कोंपलोंको पीस कर शहदमें पेपितं च मधुमस्तुसंयुतम् । मिला कर चाटनेसे मुखसे होने वाला रक्तस्राव तुरन्त लेह एष नियतं च मानवं बन्द हो जाता है।
___ रक्तवाहमतिवारयत्यपि ॥ ( मात्रा-६ माशे ।) (६६९८) वटाचवलेहः (२)
इन्द्रजौ, अतीस, सोंठ और हरै समान भाग (वृ. नि. र. । तृष्णा .)
ले कर सबको एकत्र पीस कर शहदमें मिलावें । वटबाला शिवा कृष्णा मधुकं मधुना सह ।
इसमें मस्तु मिला कर चाटनेसे रक्तातिसार नष्ट अवलेहः कृतोमीषां तृषारोगो विनश्यति ॥ | होता है ।
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