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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - भैषज्य रत्नाकरः ६२० सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, नागरमोथा, बायबिडंग, देवदारु, गिलोय, चीता, निसोत, दन्तीमूल, बच, सूरण (जिमीकन्द ) और मानकन्द; इनका चूर्ण २॥ -२ ॥ तोले; एवं २॥ -२ ॥ तोले शुद्ध पारद और गन्धककी कज्जली तथा छिलके और भीतरकी पत्ती रहित १००० जमालगोटे । इन सबका बारीक चूर्ण मिला कर सुरक्षित रक्खें । मात्रा - २ माशे । इसे खा कर उष्ण जलादि पीना चाहिये । इसके सेवन से जठराग्नि, धातु, आयु और की वृद्धि होती है । यह गूगल आमवात, शिरोगतवायु, ग्रन्थिवात, भगन्दर, जानु और जंघास्थित बायु, कटीगत वायु, शोथ, शूल, वृद्धिरोग, और अर्श आदिको नष्ट करता है । (६६९४) व्योषादिगुग्गुलुः (वृ. मा. | मेदोवृद्ध्य. र. र. । स्थौल्य . ; वैद्या . ) व्योषाग्निमुस्तत्रिफला विडङ्गैर्गुग्गुलं समम् । खादन्सर्वाञ्जयेद्वाधीन्मेदः श्लेष्मामवातजानन् || सोंठ, मिर्च, पीपल, चीता, नागरमोथा, हर्र, बहेड़ा, आमला और बायबिडंगका चूर्ण १ - १ भाग तथा शुद्ध गूगल सबके बराबर कर सबको एकत्र मिला कर कूटें | भारत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [वकारादि (६६९५) व्योषादिगुग्गुलुः ( वृ. नि. र. । गण्डमाला. ) षट्पलं व्योषचूर्ण च त्रिफला च पलत्रयम् । काञ्चनारत्वचश्चूर्ण योजयेद्वादशं पलम् गुग्गुलुः सर्वतुल्यः स्यात्सर्वमेकत्र कुट्टयेत् । क्षौद्रं पलशतं देवं गुटिकां कर्षसम्मिताम् ॥ भक्षयेद्गण्डमालार्तो गलग्रन्थींश्च नाशयेत् ॥ सेठ, मिर्च, पीपलका चूर्ण ३० - ३० तोले, हरे, बहेड़े और आमले का चूर्ण १५-१५ तोले, कचनारकी छालका चूर्ण ६० तोले तथा शुद्ध गूगल सबके बराबर ले कर सबको एकत्र मिला कर कूठें और सबके एक जीव हो जाने पर उसे १०० पल (६ । सेर) शहद में मिला कर १-१ 1 तोलेकी गुटिका बना लें । इसके सेवन से गण्डमाला और गलग्रन्थियां नष्ट होती हैं । (६६९६) व्योषाचा गुटिकागुग्गुलुः ( ग. नि. । गुटिका. ४ ) व्योषं सग्रन्थिकं पथ्यां चित्रकं जीरकद्वयम् । अजमोदां यत्रानीं च वनां चैवमवल्गुजम् || लवणत्रितयं क्षारं समभागानि चूर्णयेत् । यावत्येतानि द्रव्याणि तावन्तं गुग्गुलं शुभम् ॥ पलार्धसम्मतं चात्र योजयेच्चाम्लवेतसम् । यह गूगल मेद और कफ तथा आमवातज गुटिकैषा हिता वाते सामे सन्ध्यस्थिमज्जगे ॥ समस्त रोगोंको नष्ट करता है । ( मात्रा - ३ माशा । ) For Private And Personal Use Only नवं करोति भग्नं च जठरानलदीपनम् । पूजिता देवदेवेन कालपादेन शम्भुना ||
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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