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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि (६७००) वरुणकगुडः चूर्ण द्रव्य-सांठ, ककड़ी के बीज, गोखरु, | पीपल, पाषाणभेद, दूर्वा, पेठेके बीज, खी रेके बीज, ( भा. प्र.। म. खं. २ अश्मरी. ; व. से. ; वृ. | कमलगट्टे, धनिया (अथवा शुद्ध मनसिल), बथुवा, नि. र. । अश्मरी.) सहंजनेकी छाल, मुनक्का, छोटी इलायची, शिलानो जग्धं कृमिभिर्घनं जीत, हर्र और बायबिडंग; प्रत्येक ५-५ तोला ले कर चूर्ण बनावें। सुतरुणं स्निग्धं शुचिस्थान इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे अश्मरी घने पुण्यनिरीक्षिते शीघ्र ही निकल जाती है। वरुणकं छित्त्वा तुलां ग्राहयेत् । (६७०१) वाजीकरो लेहः (१) सङ्गृह्याशु चतुर्गुणासु विपचेत्पादावशेष जलं तत्तुल्येन गुडेन वै दृढतरे भाण्डे पचेत्पुनः।। (र. प्र. सु. । अ. १२) ज्ञात्वैवं घनतां गुडे परिणते प्रत्येकमेषां पलं । शतावरी क्षीरविदारिकां च । शुण्ठये रुकबीजगोक्षुरकणापाषाणभिच्छीतलाः प्रस्थार्थमानां पृथगेव कुर्यात् । कूष्माण्डपुसाक्षबीज रसं तथा शाल्मलिमध्यमूलात् कुनटी वास्तूक शोभाअनै प्रस्थं सितार्धाढकमत्र देयम् ॥ दक्षिलागिरिजाभया कृमि सुपाचितं वै मृदुवदिना तथा हृतां चूर्णीकृतानां क्षिपेत् ॥ दीपलेपोऽपि हि जायते यथा । पथ्याशी प्रतिवासरं गुड स्वपत्रकैलाः सह केशरेण ममुं युज्याप्रमाणं नरः पलप्रमाणा हि ततो विदध्यात् ॥ खादेत्तस्य समस्तदोष लेहे सुशीते मधु विल्वमात्र जनिताऽश्मर्य पतन्ति द्रुतम् ॥ प्रातः प्रभक्षेदिह कर्षमात्रम् ॥ उत्तम स्थानमें उत्पन्न हुवे, कृमियोंसे न शतावर और क्षीरविदारीका चूर्ण ४०-४० खाये हुवे तरुण और स्निग्धतायुक्त बरनेकी छाल तोले; सेंभलकी जड़के बीचकी मूसलीका रस २ ६। सेर ले कर कूट कर ५० सेर पानीमें पकावें सेर और मिश्री २ सेर ले कर सबको एकत्र मिला और १२॥ सेर पानी शेष रहने पर छान लें। कर पकावें । जब गाढ़ा हो कर करछीको लगने तदनन्तर उसमें ६। सेर गुड़ मिला कर पकावें। लगे तो उसमें तेजपात, दालचीनी, इलायची और जब वह गुड़के समान गाढ़ा हो जाय तो उसमें नागकेसरका चूर्ण ५-५ तोले मिला दें । जब निम्न लिखित ओषधियोंका चूर्ण मिला कर सुर- वह ठंडा हो जाय तो उसमें ५ तोले शहद मिला क्षित रखें। कर सुरक्षित रक्खें । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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