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चूर्णप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
(६६११) विडङ्गादिचूर्णम् (५)
(६६१५) विडङ्गादिचूर्णम् (९) ( ग. नि. । छर्य. १४ ; व. से. ; वृ. मा.)
(व. से. । हृद्रोगा.) विडङ्गत्रिफलाविश्वचूर्ण मधुयुतं जयेत् ।
| कृमिजे च पिबेन्मूत्रं विडङ्गामयसंयुतम् । विडङ्गप्लवशुण्ठीनामथवा श्लेष्मजां वमिम् ॥
हदि स्थिताः पतन्त्येव द्यवस्तात्कृमयो नृणाम् ।।
__ कृमिजन्य हृद्रोगमें बायबिडंग और कूठका बायबिडंग, त्रिफला और सोंठ समान भाग
चूर्ण गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे निम्न मार्गसे ले कर चूर्ण बनावें।
कृमि निकल जाते हैं। इसे, अथवा बायबिडंग, नागरमोथा और सेठिके चूर्णको शहदके साथ सेवन करनेसे कफज
(६६१६) विडङ्गादिचूर्णम् (१०)
(यो. र. । कृम्य.) छदि नष्ट होती है।
विडङ्ग पारिभद्राग्रं ब्रह्मवीजं पृथपिवेत् । (६६१२) विडङ्गादिचूर्णम् (६)
मधुना कृमिनाशाय निम्बं वा हिङ्गुना युतम् ॥ (वृ. नि. र. । संग्रहण्य.)
बायबिडंग, नीमकी कोंपल और ढाक (पलाश) विडङ्गयवानी विष्टम्भे पिबेदुष्णेन वारिणा। के बीजोंका चूर्ण पृथक पृथक् शहदके साथ सेवन ___ बायबिडंग और अजवायन समान भाग ले | करनेसे या नीमकी पत्ती और हींग मिला कर सेवन कर चूर्ण बनावें ।
| करनेसे कृमि नष्ट हो जाते हैं। इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे ग्रहणी
(६६१७) विडङ्गादिचूर्णम् (११) रोगान्तर्गत विष्टम्भ नष्ट होता है।
(व. से. । शोथा.)
विडङ्गातिविषादारुनागरेन्द्रयवावचाः । (६६१३) विडङ्गादिचूर्णम् (७)
उष्णाम्बुना पिबेच्छोथी ह्यक्षमात्रं सहोषणम् ॥ (वा. भ. । चि. अ. १९)
बायबिडंग, अतीस, देवदारु, सेांठ, इन्द्रजौ, "माणिभद्र मोदकः” प्रयोग सं. ५१७४ देखिये।
| बच और काली मिर्च समान भाग ले कर चूर्ण (६६१४) विडङ्गादिचूर्णम् (८) बनावें। (यो. र. । बाल.)
इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे शोथ विडङ्गान्यजमोदा च पिप्पलीतण्डुलानि च ।
मात्रा-१। तोला । एषामालिद्य चूर्णानि सुखतप्तेन वारिणा ॥
(व्यवहारिक मात्रा--३-४ माशे ।) बायबिडंग, अजमोद और पीपलके चावल
(६६१८) विडङ्गादिचूर्णम् (१२) समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
( वृ. यो. त. । त. ६४) इसे उष्ण जलके साथ सेवन करानेसे विडङ्गातिविषामुस्तादारुपाठाकलिङ्गकम् । बालकोंका अतिसार नष्ट होता है।
मरिचेन समायुक्तं शोफातिसारनाशनम् ।।
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