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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ भारत-भैषज्य-रत्नाकर [वकारादि (६६०६) विडङ्गादिक्षारः लिहन्ति ये मन्दहुताशना (. यो. त.। त. १०५ ; व. से. । उदरा. नरा भवन्ति ते वाडवतुल्यवह्नयः॥ च. सं. । चि. अ. १८) बायबिडंग, शुद्ध भिलावा, चीता, गिलोय विडङ्गं चित्रकं सक्तून्सघृतं सैन्धवं वचाम् । और सांठ समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । दग्ध्वा कपाले पयसा गुल्मप्लीहापहं पिबेत् ॥ इसे समान भाग गुडमें मिला कर घीके बायबिडंग, चीता, स., घी, सेंधा, और बच | साथ सेवन करनेसे अग्नि अत्यन्त दीत हो समान भाग ले कर मृत्पात्रमें जला कर भस्म करें। जाती है। इसे दूधके साथ सेवन करनेसे गुल्म और (मात्रा--३ माशे । ) प्लीहाका नाश होता है। (६६०९) विडङ्गादिचूर्णम् (३) (६६०७) विडङ्गादिचूर्णम् (१) (र. र. । हिक्काश्वासा.) (न. से. । उदरा.) विडङ्गपिप्पली चैलात्वचञ्च प्रतिकार्षिकम् । विडङ्गानि यवानी च चित्रकं चेति तत्समम् । त्रिकर्ष मरिचस्यापि नागराचतुष्पलम् ॥ द्विगुणं देवदारु च नागरं सपुननेवम् ॥ सर्वतुल्या सिता योज्या कर्षमात्रं च भक्षयेत् । अथ चैतानि चूणोंनि गवां मूत्रेण पाययेत् । कासश्वासज्वरप्लीहपाण्डुरोगक्षयापहम् ॥ उदरीभूतमप्येवं प्लीहानं संप्रणाशयेत् ॥ बायबिडंग, पीपल, इलायची और दालचीनी ___ बायबिडंग, अजवायन और चीता १-१ भाग, तथा देवदारु, सेठ और पुनर्नवा २-२ | ११-१। तोला, काली मिर्च ३।। तोले और सोंठ २० तोले तथा मिश्री सबके बराबर ले कर चूर्ण भाग ले कर चूर्ण बनावें। - इसे गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे प्रवृद्ध प्लीहा बनावें । नष्ट हो जाती है। मात्रा--१। तोला । (मात्रा--३ माशे ।) इसके सेवनसे कास, श्वास, ज्वर, प्लीहा, (६६०८) विडङ्गादिचूर्णम् (२) । | पाण्डु और क्षयका नाश होता है । (वृ. मा. ; व. से. । अजीर्णा, ; वृ. नि. र.) ( मात्रा--४-५ माशे ।) विडङ्गभल्लातकचित्रकामृता२। (६६१०) विडङ्गादिचूर्णम् (४) ___ सनागरा तुल्यगुडेन सर्पिषा । ( व. से. । कृम्य.) १ शुण्ठी सघृतामिति पाठान्तरम् । | लिह्यात्क्षौद्रेण वैडङ्गं चूर्ण कृमिविनाशनम् । १ ग. नि. में घृतके स्थानमें अर्कमूल लिखा | सुरसादिगणं वापि सर्वथैवोपयोजयेत् ॥ है ( ग. नि. । उदरा ३२ ) - शहदके साथ बायबिडंगका चूर्ण अथवा २ चित्रकाभयाः इति पाठान्तरम् सुरसादिगण सेवन करनेसे कृमि रोग नष्ट होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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