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भारत-भैषज्य-रत्नाकर
[वकारादि
(६६०६) विडङ्गादिक्षारः
लिहन्ति ये मन्दहुताशना (. यो. त.। त. १०५ ; व. से. । उदरा.
नरा भवन्ति ते वाडवतुल्यवह्नयः॥ च. सं. । चि. अ. १८)
बायबिडंग, शुद्ध भिलावा, चीता, गिलोय विडङ्गं चित्रकं सक्तून्सघृतं सैन्धवं वचाम् । और सांठ समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । दग्ध्वा कपाले पयसा गुल्मप्लीहापहं पिबेत् ॥ इसे समान भाग गुडमें मिला कर घीके
बायबिडंग, चीता, स., घी, सेंधा, और बच | साथ सेवन करनेसे अग्नि अत्यन्त दीत हो समान भाग ले कर मृत्पात्रमें जला कर भस्म करें। जाती है।
इसे दूधके साथ सेवन करनेसे गुल्म और (मात्रा--३ माशे । ) प्लीहाका नाश होता है।
(६६०९) विडङ्गादिचूर्णम् (३) (६६०७) विडङ्गादिचूर्णम् (१)
(र. र. । हिक्काश्वासा.) (न. से. । उदरा.)
विडङ्गपिप्पली चैलात्वचञ्च प्रतिकार्षिकम् । विडङ्गानि यवानी च चित्रकं चेति तत्समम् ।
त्रिकर्ष मरिचस्यापि नागराचतुष्पलम् ॥ द्विगुणं देवदारु च नागरं सपुननेवम् ॥
सर्वतुल्या सिता योज्या कर्षमात्रं च भक्षयेत् । अथ चैतानि चूणोंनि गवां मूत्रेण पाययेत् ।
कासश्वासज्वरप्लीहपाण्डुरोगक्षयापहम् ॥ उदरीभूतमप्येवं प्लीहानं संप्रणाशयेत् ॥
बायबिडंग, पीपल, इलायची और दालचीनी ___ बायबिडंग, अजवायन और चीता १-१ भाग, तथा देवदारु, सेठ और पुनर्नवा २-२ |
११-१। तोला, काली मिर्च ३।। तोले और सोंठ
२० तोले तथा मिश्री सबके बराबर ले कर चूर्ण भाग ले कर चूर्ण बनावें। - इसे गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे प्रवृद्ध प्लीहा
बनावें । नष्ट हो जाती है।
मात्रा--१। तोला । (मात्रा--३ माशे ।)
इसके सेवनसे कास, श्वास, ज्वर, प्लीहा, (६६०८) विडङ्गादिचूर्णम् (२) ।
| पाण्डु और क्षयका नाश होता है । (वृ. मा. ; व. से. । अजीर्णा, ; वृ. नि. र.)
( मात्रा--४-५ माशे ।) विडङ्गभल्लातकचित्रकामृता२। (६६१०) विडङ्गादिचूर्णम् (४) ___ सनागरा तुल्यगुडेन सर्पिषा ।
( व. से. । कृम्य.) १ शुण्ठी सघृतामिति पाठान्तरम् । | लिह्यात्क्षौद्रेण वैडङ्गं चूर्ण कृमिविनाशनम् ।
१ ग. नि. में घृतके स्थानमें अर्कमूल लिखा | सुरसादिगणं वापि सर्वथैवोपयोजयेत् ॥ है ( ग. नि. । उदरा ३२ )
- शहदके साथ बायबिडंगका चूर्ण अथवा २ चित्रकाभयाः इति पाठान्तरम् सुरसादिगण सेवन करनेसे कृमि रोग नष्ट होता है ।
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