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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः (६६०३) विजयचूर्णम् हृच्छूल, पार्श्वशूल, वातगुल्म, उदररोग, हिक्का, (ग. नि. । चूर्णा, ३; च. द. ; भै. र. ; श्वास, प्रमेह, कामला, पाण्डु, आम, उदावर्त, व. से. । अर्शा.) - अन्त्रवृद्धि, कृमि, ग्रहणी विकार, महा ज्वर, भूतो. त्रिकत्रयवचाहिपाठाक्षारनिशाद्वयम् । न्माद और बन्ध्यत्व रोग नष्ट होता है । चन्यतिक्ताकलिङ्गाग्निशताहालवणानि च ॥ (६६०४) विजयायोगः ग्रन्थिविल्वाजमोदा च गणोऽष्टाविंशतिर्मतः । (वृ. नि. र. । वातज्वरा.) एतानि समभागानि श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत् ॥ ततो द्विमाषामितं पिबेदुष्णेन वारिणा । ५" भ्रष्टं तु विजयाचूर्ण मधुना निशि भक्षयेत् । एरण्तैलयुक्तन्तु सदा लिह्यात्ततो नरः॥ | निद्रानाशेतिसारे च ग्रहण्यां पावकक्षये ॥ कासं हन्यात्तथा शोथमर्शा सि च भगन्दरम् । भुनी हुई भांगके चूर्णको रात्रिके समय हृच्छूलं पार्श्वशूलश्च वातगुल्मं तथोदरम् ॥ शहदमें मिला कर सेवन करनेसे निद्रानाश, हिक्काश्वासप्रमेहांश्च कामलां पाण्डुरोगताम् । अतिसार, संग्रहणी और अग्निमांद्यका नाश आमान्वयमुदावत्र्तमन्त्रद्धिं गुदं कृमीन् । | होता है। अन्ये च ग्रहणीदोषा ये मया परीकीर्तिताः । महाज्वरोपसृष्टानां भूतोपहतचेतसाम् ॥ (६६०५) विडङ्गतण्डुलचूर्णम् अप्रजानान्तु नारीणां प्रजावर्द्धनमेव च। (वा. भ. । कल्प. अ. २) विजयो नाम चूर्णोऽयं कृष्णात्रेयेण पूजितः ॥ विडङ्गतण्डुलवरायावशूककणात्रिकृत् । सोंठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा, आमला, सर्वेभ्योऽद्धन तल्लीदें मध्वाज्येन गुडे न वा ॥ दालचीनी, इलायची, तेजपात, बच, हींग, पाठा, गुल्मं प्लीहोदरं कासं हलीमकमरोचकम् । जवाखार, हल्दी, दारुहल्दी, चव्य, कुटकी, इन्द्रजौ, चीता, सोया, पांचों नमक [सेंधा, सञ्चल, कफवातकृतांश्चान्यान्परिमाटि गदान्वहून् । बिड नमक, काच लवण, सामुद्र लवण], पीपला बायबिडंगके चावल, त्रिफला, जवाखार और मूल, बेलगिरी और अजमोद; ये २८ ओषधियां पीपल १-१ भाग तथा निसोत सबसे आधा ले समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । कर चूर्ण बनावें । मात्रा--२ माशे। इसे शहद और घीके अथवा गुड़के साथ अनुपान---उष्ण जल सेवन करनेसे गुल्म, प्लीहा, कास, हलीमक, अरुचि इसे अण्डीके तेल में मिला कर चाटना चाहिये। और कफ वातज अनेक रोग नष्ट होते हैं। इसके सेवनसे खांसी, शोथ, अर्श, भगन्दर, I (मात्रा--३ माशे । ) હર્ષ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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