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चूर्ण प्रकरणम् ]
(६५७१) व्याध्यादिकषाय: (९)
( रा. मा. । ज्वरा. २० )
व्याघ्रीपटोल त्रिफला निशाब्दैः सरोहिणीकैः पिचुमर्दयुक्तैः ।
सदेवकाष्ठैश्च जलं नराणां सर्वज्वरान् हन्ति निपीयमानम् ॥
चतुर्थी भागः
कटेली, पटोल, हर्र, बहेड़ा, आमला, हल्दी, नागरमोथा, कुटकी, नीमकी छाल और देवदारु समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, नीम की छाल, पटेल, पित्तपापड़ा, इन्द्रजौ, चिरायता, गिलोय और पाठा समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
यह क्वाथ त्रिदोषज ज्वरको नष्ट करता है । इति वकारादिकषायप्रकरणम्
अथ वकारादिचूर्णप्रकरणम्
(६५७३) वचादिचूर्णम् (१) ( व. से. । अतिसारा. ) aarfaraणा विश्वाकुलकं कुष्ठदीप्यकम् । सविडङ्गं जयेत्पीतमाममुष्णाम्बुना समम् ॥
बच, बेलगिरी, पीपल, सोंठ, पटोल, कूठ, अजमोद और बायबिड़ंग समान भाग ले कर चूर्ण
बनावें ।
(६५७४) वचादिचूर्णम् (२) ( च. सं । चि. अ. १९ ग्रहण्य. ) वचामतिविषां पाठां सप्तपर्णरसाञ्जनम् ।
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इसे पीने से समस्त ज्वर नष्ट होते हैं । (६५७२) व्योषादिकषायः (व. से. । ज्वरा. )
व्योषा त्रिफलारिष्टपटोलीतिक्तवत्सकैः । सभूनिम्बामृतापाठैस्त्रिदोषज्वर जिज्जलम् ||
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श्योनाकोदीच्यङ्गवत्सकत्वग्दुरालभाः ॥ दार्वी पर्यटकं सूत्र यत्रानीं मधुशिग्रुकम् । पटोलपत्रं सिद्धार्थान्यूथिकं जातिपल्लवान् ।। जम्ब्वाविवमध्यानि निम्बपत्रफलानि च । तद्रोगराममन्विच्छन्भूनिम्बाधेन योजयेत् ॥
बच, अतीस, पाठा, सतौना वृक्षकी छाल,
इसे उष्ण जलके साथ पीनेसे आमातिसार रसौत, अरलुकी छाल, सुगन्धवाला, अरलुकी छाल, होता है।
( मात्रा - ३ माशे । )
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कुड़ेकी छाल, धमासा, दारूहल्दी, पित्तपापड़ा, मूर्वा, अजवायन, लाल संहजनेको छाल, पटोलपत्र, सफेद सरसों, जूही के पत्ते, चमेली के पत्ते, जामनकी गुठली, आमकी गुठली, बेलगिरी, नीमके पत्ते और फल समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।