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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि (६५६६) व्याध्यादिकषायः (४) । इसमें जवाखार मिला कर पीनेसे हृदय, ( वा. भ. । चि. अ. १) कुक्षि और पसलीका कफज शूल नष्ट होता है। सनिपातज्वरे व्याघ्रीदेवदारुनिशाधनम् । (६५६९) व्याध्यादिकषायः (७) पटोलपत्रनिम्बत्वत्रिफलाकटुकायुतम् ॥ (वृ. नि. र. । विषमज्वरा.) ___कटेली, देवदारु, हल्दी, नागरमोथा, पटोल व्याघ्री विश्ववितुन्नपुष्करपत्र, नीमकी छाल, त्रिफला और कुटकी समान रजोभूनिम्बवासामृताभार्गीभाग ले कर क्वाथ बनावें । निम्बपटोलपनकपनयह क्वाथ सन्निपात ज्वरको नष्ट करता है। स्तिक्ताकलिङ्गैः कृतः। (६५६७) व्याध्यादिकषायः (५) क्वाथो हन्ति सचन्दनः (व. से. । श्वासा.) कफमरुत्पित्तं सदाहं तृषां कासं पञ्चविध ज्वरं कृमिन्याघ्रीदुरालभाशृङ्गीविल्वमध्यत्रिकण्टकैः। सामृतानिभृतैरेतैयूषः स्याच्वासनुत्परः॥ रुज पाण्डं वर्मि कामलाम् ॥ ____ कटेली, धमासा, काकड़ासिंगी, बेलगिरी, कटेली, सोंठ, धनिया, पोखरमूल, चिरायत , गोखरु और गिलोय समान भाग ले कर क्वाथ बासा, गिलोय, भरंगी, नीमकी छाल, पटोल, पनाक, बनावें । नागरमोथा, कुटकी, इन्द्रजौ और लाल चन्दन समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । यह काथ पीनेसे श्वास नष्ट होता है । ___ यह क्वाथ कफ, वायु, पित्त, दाह, तृषा, ५ (६५६८) व्याध्यादिकषायः (६) प्रकारकी खांसी, ज्वर, कृमि, पाण्डु, वमन और (व. से.। शुला.) कामलाको नष्ट करता है। व्याघ्री ससिंहीफलबिल्वमूलं शिलोद्भवं गोक्षुरकश्च तुल्यम् । (६५७०) व्याध्यादिकषाय: (८) एरण्डमूलं द्विगुणं च पक्त्वा (व. से. । ज्वरा. ; वृ. नि. र.) पिबेद्यवक्षारयुतं कषायम् ॥ व्याघ्रीदुरालभाभार्गी शठी शृङ्गी सपौष्करम् । हृत्कुक्षिपाश्र्वानुगतं निहन्या पक्वाम्बुश्लेष्महदेयमभिन्यासपशान्तये ॥ च्छूलं नराणां कफ प्रवृद्धम् ॥ | कटेली, धमासा, भरंगी, कचूर, काकड़ासिंगी ___कटेली, कटेलीके फल, बेलकी जड़की छाल, और पोखरमूल समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । छरीला और गोखरु १-१ भाग तथा अरण्डमूल यह काथ कफ और अभिन्यास ज्वरको नष्ट २ भाग ले कर क्वाथ बनावें । करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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