________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५८६
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि
-
इसे भूनिम्बादिके साथ देनेसे संग्रहणी रोग । बच, सञ्चल ( काला नमक ), होग, कूठ नष्ट होता है।
और इन्द्रजौ समान भाग ले कर चूर्ण बना । (६५७५) वचादिचूर्णम् (३)
इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे समस्त
प्रकारके शूल नष्ट होते हैं। (३. मा.। स्त्री. ; व. से.) ।
( मात्रा-२ माशे ।) वचोपकुञ्चिकाजाजीकृष्णादृषकसैन्धवम् ।
(६५७८) वचादिचूर्णम् (६) अजमोदायवक्षारचित्रकं शर्करान्वितम् ॥
( हा. सं. । स्था. ३ अ. २) पिष्ट्वा प्रसन्नयालोडय खादेत्तद् घृतभर्जितम् ।
वचा यवानी च महौषधं च योनिपातिहृद्रोग गुल्माझे विनिवृत्तये ॥
___ शुष्कं च चूर्ण तनुलेपनाय । ___ बच, काला जीरा, सफेद जीरा, पीपल, बासा, शस्तं वदन्ति ज्वरधर्मशान्ति सेंधा, अजमोद, जवाखार, चीता और खांड समान करोति नूनं परिमर्दनेन ॥ भाग ले कर चूर्ण बनावें।
बच, अजवायन और सेठ समान भाग ले ___ इसे प्रसन्ना सुरामें मिला कर घीसे छौंक कर | कर चूर्ण बनावें । पीनेसे योनि शूल, पार्श्व पीडा, हृद्रोग, गुल्म और ज्वर में अधिक पसीना आता हो तो वह इसकी अर्शका नाश होता है।
मालिशसे अवश्य शान्त हो जाता है। ( मात्रा-३ माशे । )
(६५७९) वचादिचूर्णम् (७)
(वा. भ. । उ. अ. १) (६५७६) वचादिचूर्णम् (४)
वचायष्टयाहसिन्धृत्यपथ्यानागरदीप्यकैः। (व. से. । अपस्मारा. ; वृ. मा.) शुद्धयते वाग्घविलीद्वैः सकुष्ठकणजीरकैः॥ यः खादेत क्षीरभक्ताशी माक्षिकेन वचारजः। . बच, मुलैठी, सेंधानमक, हर्र, सांठ, अजअपस्मारं महाघोरं मुचिरोत्थं जयेद ध्रुवम् ॥ मोद, कूठ, पीपल और जीरा समान भाग ले कर
बचके चूर्णको शहदमें मिला कर सेवन करने चूर्ण बनावें। और दूध भातका आहार करनेसे पुराना और भयं- इसे घीके साथ सेवन करनेसे वाणी शुद्ध कर अपस्मार भी अवश्य नष्ट हो जाता है।
| होती है।
(६५८०) वचादिचूर्णम् (८) (६५७७) वचादिचूर्णम् (५)
(भै. र. । गुल्मा. ; ग. नि. । शूला. २३, (ग. नि. । शूला. २३ ; वृ. नि. र.)
गुल्मा. २५; वृ. मा. ; व. से. ; वृ. नि. र.) वचा सुवर्चला हिङ्गु कुष्ठमिन्द्रयवाः समम् । वचाऽभया बिडं शुण्ठी हि कुष्ठाग्निदीप्यकाः। चूर्णमुष्णाम्भसा पीतं सर्वशूलनिकृन्तनम् ॥ द्वित्रिषट्चतुरेकाष्टसप्तपञ्चांशकाः क्रमात् ॥
For Private And Personal Use Only