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५८० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि भरंगी, शतावर, काकड़ासिंगी, रास्ना, इन्द्रजौ, | कचूर, दालचीनी, पीपल, कुटकी, हर्र, सुगन्धबाला, देवदारु, सहजनेकी छाल, धमासा, धनिया, सांठ. | चिरायता, भरंगी, हींग, खरैटी, दशमूल, और पीपपाठा, कटुसूरण, हर, त्रायमाणा, बड़ी इलायची. | लामूल समान भाग ले कर काथ बनावें । कुटकी और कूठ समान भाग ले कर काथ बनावें।
इसमें हींग और अदरकका रस मिलाकर
पिलानेसे सन्निपात नष्ट होता है । यह काथ वातकफज ज्वर, खांसी, श्वास, शूल,
इसके अतिरिक्त यह काथ गलगण्ड, गण्डबात प्रधान रोग, शीत, जीर्णज्वर और दुष्ट मल.
माला, स्वरभेद, गलरोग, कर्णमूलकी सूजन, हनु ग्रहको नष्ट करता है। (६५५१) वृहच्छालिपादिक्याथः ।
रोग, मुख रोग, कफवात ज्वर, कास, शिरो रोग,
शिरका भारीपन और कफ वातज बधिरताको भी (वृ. यो. त. । त. ६४ )
नष्ट करता है। शालिपर्णी पृश्निपर्णी बृहती कण्टकारिका।
(६५५३) वृहत्क्षुद्रादिकाथः बलाश्वदंष्ट्रा बिल्याग्नि पाठानागरधान्यकम् ।।
(वै. र. । ज्वर.) एतदाहारसंयोगो हितं सर्वातिसारिणाम् ।।
| क्षुद्राधान्यकशुण्ठीभिर्गुडूचीमुस्तपद्मकैः । शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, छोटी और बड़ी कटेली,
| रक्तचन्दनभूनिम्बपटोलवृषपौष्करैः॥ खरैटी, गोखरु, बेलछाल, चीता, पाठा, सेठ, और कटुकेन्द्रयवारिष्टभागीपर्पटकैः समैः । धनिया इनके काथसे आहार बना कर देना अति
क्वार्थ पातनिषेवेत सर्बशीतज्वरापहम् ॥ सारमें हितकारी है।
____ कटेली, धनिया, सेठ, गिलोय, नागरमोथा, (६५५२) वृहत् कट्फलादिक्वाथः पनाक, लाल चन्दन, चिरायता, पटोल, बासा, ( भै. र. । ज्वरा,)
पोखरमूल, कुटकी, इन्द्रजौ, नीमकी छाल, भरंगी करफलाब्दवचापाठापुष्कराजाजिपर्पटैः। और पित्तपापड़ा समान भाग ले कर काथ बनावें । शृङ्गीकलिङ्गधन्याकं शटीभृङ्गकणाद्वयम् ॥ | इसे प्रातः काल पीनेसे समस्त शीत ज्वर तिक्ताभयाम्बुकैरानं भार्गी रामठकं बला। नष्ट होते हैं। दशमूली कणामूलं निःक्वाथ्य क्याथमुत्तमम् ॥ वृहत्त्रायमाणादिक्वाथ: हिवाकरसोपेतं सन्निपातविनाशनम् ।
( यो. चि. म. | अ. ४) गलगण्डं गण्डमालां स्वरभेदं गलामयान् ॥ प्र. सं. २२४६ " त्रायमाणादि क्वाथः " कर्णमूलोद्भवं शोथं हन्यानुमुखामयान् । । (वृहद् ) देखिये । कफवातज्वरं कास तथा हन्ति शिरोगदान् ।। (६५५४) वृहत्पञ्चमूल्यादिक्वाथः शिरोगुरुत्वं बाधिर्य निहन्ति कफवातिकम् ॥ (भै. र. । ज्वरातिसारा.) ___ कायफल, नागरमोथा, बच, पाठा, पोखरमूल, पञ्चमूलीशृङ्गवेरशृङ्गाटकञ्चटं धनम् । जीरा, पित्तपापड़ा, काकडासिंगी, इन्द्रजौ, धनिया, जम्बूदाडिमपत्रश्च बला बालं गुचिका ॥
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