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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः (६४७२) वचादिक्वाथः (२) वचादि गणके काथसे स्नान करनेसे कफ और तिमिर रोग नष्ट होता है। (भा. प्र. ; वृ. नि. र. । सन्निपाता.) वचाकवचकछुरासहचरामृताभङ्गुरा (६४७५) वज्रकाञ्जिकम् सुराहघननागरातरुणदारुरास्नापुराः। (भै. र. । स्त्रीरोगा. ; ग. नि. । सूतिका. ७; वृषातरुणभीरुभिः सह भवन्ति सन्धिग्रह वृ. मा. ; व. से. ; र. र. ; यो. र. । व्यथोरुजउिमक्लमभ्रमणपक्षघातापहाः॥ ___ स्त्रीरोगा. ; वृ. यो. त. । त. १४३; बच, पित्तपापड़ा, जवासा, कटसरैया, गिलोय, अतीस, देवदारु, नागरमोथा, सोंठ, विधारामूल, यो. त. । त. ७६ ) रास्ना, गूगल, बड़ी दन्तीकी जड़, अरण्डमूल और पिप्पलो पिप्पलीमूलं चव्यं शुण्ठी यमानिका । शतावर समान भाग लेकर क्वाथ बनावें। जीरके द्वे हरिद्रे द्वे विडं सौवर्चलं तथा ॥ यह काथ सन्धिक सन्निपात, जांघोंकी जड़ता | ऐतैरेवौषधैः पिष्टैरारनालं विपाचयेत् । क्लम, भ्रम और पक्षाघातको नष्ट करता है। एतदामहरं वृष्यं कफघ्नं वह्निदीपनम् ॥ (६४७३) वचादिगणः काञ्जिकं वज्रकं नाम स्त्रीणामग्निविवर्द्धनम् । मक्कलशूलशमनं परं क्षीराभिवर्द्धनम् ॥ (सु. सं. । सू. अ. ३८) | क्षीरपाकविधानेन काअिकस्यापि साधनम् । वचामुस्तातिविषाभयाभद्रदारूणि नागकेशर ञ्चेति । ___ पीपल, पीपलामूल, चव, सेठ, अजवायन, एतौ वचा हरिद्रादी गणौ स्तन्यविशोधनौ | जीरा, काला जीरा, हल्दी, दारुहल्दी, बिड नमक और काला नमक, समान भाग ले कर सबको आमातीसारशमनौ विशेषादोषपाचनौ ।।। बच, नागरमोथा, अतीस, हर, देवदारु और एकत्र पीस कर आरनालमें पकावें । नागकेसर; इनके समूहको “वचादिगण " | यह आमनाशक, वृष्य, कफनाशक, और कहते हैं। अग्निदीपक है। वचादि गण तथा हरिद्रादि गण स्तन्य इसके सेवनसे स्त्रियोंकी जठराग्नि तीव्र होती शोधक, आमातिसार नाशक और विशेषतः दोष | और मक्कल शूल नष्ट होता है एवं दूध बढ़ता है। पाचक हैं। वज्रकाञ्जीका पाक क्षीरपाक विधिसे करना (६४७४) वचादियोगः चाहिये। ( यो र. ; व. से. । नेत्र रोगा.) (औषधोंका अधकुटा चूर्ण ५ तोले, कांजी १ बचाद्यैः स्नानमिच्छन्ति श्लेष्मघ्नं तिमिरापहम्।। सेर, पानी ४ सेर ।) For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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