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कषायप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
(६४७२) वचादिक्वाथः (२) वचादि गणके काथसे स्नान करनेसे कफ
और तिमिर रोग नष्ट होता है। (भा. प्र. ; वृ. नि. र. । सन्निपाता.) वचाकवचकछुरासहचरामृताभङ्गुरा
(६४७५) वज्रकाञ्जिकम् सुराहघननागरातरुणदारुरास्नापुराः। (भै. र. । स्त्रीरोगा. ; ग. नि. । सूतिका. ७; वृषातरुणभीरुभिः सह भवन्ति सन्धिग्रह
वृ. मा. ; व. से. ; र. र. ; यो. र. । व्यथोरुजउिमक्लमभ्रमणपक्षघातापहाः॥
___ स्त्रीरोगा. ; वृ. यो. त. । त. १४३; बच, पित्तपापड़ा, जवासा, कटसरैया, गिलोय, अतीस, देवदारु, नागरमोथा, सोंठ, विधारामूल,
यो. त. । त. ७६ ) रास्ना, गूगल, बड़ी दन्तीकी जड़, अरण्डमूल और पिप्पलो पिप्पलीमूलं चव्यं शुण्ठी यमानिका । शतावर समान भाग लेकर क्वाथ बनावें। जीरके द्वे हरिद्रे द्वे विडं सौवर्चलं तथा ॥
यह काथ सन्धिक सन्निपात, जांघोंकी जड़ता | ऐतैरेवौषधैः पिष्टैरारनालं विपाचयेत् । क्लम, भ्रम और पक्षाघातको नष्ट करता है। एतदामहरं वृष्यं कफघ्नं वह्निदीपनम् ॥ (६४७३) वचादिगणः
काञ्जिकं वज्रकं नाम स्त्रीणामग्निविवर्द्धनम् ।
मक्कलशूलशमनं परं क्षीराभिवर्द्धनम् ॥ (सु. सं. । सू. अ. ३८)
| क्षीरपाकविधानेन काअिकस्यापि साधनम् । वचामुस्तातिविषाभयाभद्रदारूणि नागकेशर
ञ्चेति ।
___ पीपल, पीपलामूल, चव, सेठ, अजवायन, एतौ वचा हरिद्रादी गणौ स्तन्यविशोधनौ
| जीरा, काला जीरा, हल्दी, दारुहल्दी, बिड नमक
और काला नमक, समान भाग ले कर सबको आमातीसारशमनौ विशेषादोषपाचनौ ।।। बच, नागरमोथा, अतीस, हर, देवदारु और
एकत्र पीस कर आरनालमें पकावें । नागकेसर; इनके समूहको “वचादिगण " |
यह आमनाशक, वृष्य, कफनाशक, और कहते हैं।
अग्निदीपक है। वचादि गण तथा हरिद्रादि गण स्तन्य इसके सेवनसे स्त्रियोंकी जठराग्नि तीव्र होती शोधक, आमातिसार नाशक और विशेषतः दोष | और मक्कल शूल नष्ट होता है एवं दूध बढ़ता है। पाचक हैं।
वज्रकाञ्जीका पाक क्षीरपाक विधिसे करना (६४७४) वचादियोगः चाहिये।
( यो र. ; व. से. । नेत्र रोगा.) (औषधोंका अधकुटा चूर्ण ५ तोले, कांजी १ बचाद्यैः स्नानमिच्छन्ति श्लेष्मघ्नं तिमिरापहम्।। सेर, पानी ४ सेर ।)
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