________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[वकारादि
सकाकजङ्घा लघुकण्टकारी । (६४७०) वचादिकषायः (६)
क्वाथोऽयमित्युद्धतसन्निपाते ॥ ( वृ. नि. र. । वातातिसा. ; व. से. । अति.) बच, गिलोय, देवदारु, सेठ, चिरायता, वचाचातिविषामुस्तं बीजानि कुटजस्य च । नागरमोथा, बासा, काकजंघा और छोटी कटेली
श्रेष्ठः कषाय एतेषां वातातीसार शान्तये ॥ समान भाग ले कर काथ बनावें।
___ बच. अतीस, नागरमोथा और इन्द्रजौ समान यह काथ प्रबल सन्निपात ज्वरको नष्ट
| भाग ले कर काथ बनावें । करता है।
यह काथ वातातिसारमें उत्तम है । (६४६८) वचादिकषायः (४)
(६४७१) वचादिक्वाथः (१) ( हा. सं । स्था. ३ अ. २)
(व. से. । नेत्र रोगा.) वचायवानी त्रिफला सविश्वा । क्वाथो निशायां कफजे ज्वरे वा।
वचात्रिच्चन्दनकुण्डली च सम्पाचनं स्यान्मनुजस्य दोषे
भूनिम्बनिम्बे रजनी सवासा। शूले प्रतिश्यायकपीनसेषु ॥
प्रस्थं जलस्य क्वथिताष्टभागं
__-पिबेत्सुजीर्णे नकुलान्ध्यरोगे ।। कफज ज्वर, शूल, प्रतिश्याय, और षीनसमें
काचं निशान्ध्यं तिमिरं तथाऽन्यापाचनके लिये बच, अजवायन, हरे, बहेड़ा, आमला और - सेठका काथ बना कर रात्रिके
नेत्रामयांस्तस्य च वत्मसन्धौ । समय पीना चाहिये ।
चिरप्रवृत्तानचिरेण हन्ति
वज्रो यथाद्रीन्सुरराजमुक्तः॥ (६४६९) वचादिकषायः (५)
बच, निसोत, लाल चन्दन, गिलोय, चिरा( वृ. मा. । मुख रोगा. ; व. से.)
यता, नीमकी छाल, हल्दी और बासा, ११-१॥ वचामतिविषां पाठां रास्नां कटुकरोहिणीम् । तोला लेकर सबको एकत्र कूट कर ८० तोले निष्क्वाथ्य पिचुमन्दं च केवलं तत्र योजयेत् ॥ पानीमें पकावें और १० तोले पानी शेष रहनेपर
बच, अतीस, पाठा, रास्ना और कुटकी छान लें। समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।।
इसके सेवनसे. पुराना नकुलान्ध्य, काच, यह काथ अथवा केवल नीमकी छालका काथ नक्तान्ध्य ( रतौंधा ), तिमिर और अन्य वर्म तथा पिलानेसे गलशुण्डिका नष्ट होती है। सन्धिगत रोग शीघ्रही नष्ट हो जाते हैं।
For Private And Personal Use Only