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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः १८ पल (९० तोले) त्रिफलाको १६ सेर लोहरसायनम् (८). पानीमें पकावें और नवां भाग शेष रहने पर छान (व. से. । रसायना.) लें । तदनन्तर उसमें त्रिफला, भंगरा और अदरकके प्र. सं. ३०२४ दासरसायन देखिये। रसमें भावित लोहभस्म २५ तोले, घी १०० लोहरसायनम् (९) तोले, शतावरका रस ८० तोले, नारियलका पानी (व. से. । रसायना.) ८० तोले, काली मिर्च और पीपलका चूर्ण २॥- प्र. सं. ३०२३ “दासलोहरसायन " २॥ तोले, सेठ ५ तोले, त्रिफलाका चूर्ण ३२॥ | देखिये। माशे, चीते और बायबिडंगका चूर्ण प्रत्येक ९ ताले | __(६४२९) लोहविकारशमनोपायः ५॥॥ माशे मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । (आ. वे. प्र. । अ. ११) ' इसके सेवनसे वात कफज उदर रोग नष्ट कृमिरिपु लीढं सहितं स्वरसेन बङ्गसेनस्य । होते हैं। क्षपयत्यचिरानियतं लोहाजीर्णोद्भवं शूलम् ॥ (६४२८) लोहरसायनम् (७) आरग्वधस्य मज्जाभी रेचन किशान्तये । (व. से. । रसायना.) भवेद्यद्यतिसारश्च पीत्वा दुग्धं तु तं जयेत् ॥ त्रिफलायाः प्रकुर्वीत प्रत्येकं पलसप्तकम् । ___बायबिडंगके चूर्णको अगस्तिके स्वरसके वारिण्यष्टगुणे पक्त्वा पश्चभागेन शेषयेत् ॥ साथ मिला कर चाटनेसे लोहाजीर्णसे उत्पन्न हुवा षट्शरावास्तु दुग्धस्य हविषः पलपश्चकम् । शूल अवश्य शीघ्र ही शान्त हो जाता है। पुटितादायसः पश्च शुद्धाभ्रस्य पलद्वयम् ॥ ___यदि लोह सेवनसे कब्ज हो जाय तो अमलविडङ्गं त्रिफला जीरं द्वयं त्रिकटु चूर्णितम् । तासके गूदेसे विरेचन देना चाहिये और दस्त लोहचूर्ण समं ग्राह्य गुणवृद्धं ततः पचेत् ॥ आने लगे तो दूध पिलाना चाहिये । ग्रहणीगदमत्युग्रं हन्त्येतदातसम्भवम् ।। __हर्र, बहेड़ा और आमला ३५-३५ तोले (६४३०) लोहशोधनम् (१) ले कर सबको एकत्र अधकुटा करके २१ सेर | (र. म. ; यो. र. ; रसे. सा. सं ; र. र. पानीमें पकायें और पांचवां भाग शेष रहने पर स. । अ. ५) छान लें । तदनन्तर उसमें ६ सेर दूध, ५० तोले | त्रिफलाष्टगुणे तोये त्रिफला षोडशोन्मिताम् । घी, २५ तोले लोह भस्म और १० तोले अभ्रक | तत्क्वाथे पादशेषे तु लोहस्य पलपञ्चकम् ॥ भस्म तथा बायबिडंग, त्रिफला, दोनों जीरे और | कृत्वा पत्राणि तप्तानि सप्तवारं निषेचयेत् । त्रिकुटेका चूर्ण २५ तोले मिलाकर पुनः पका और | एवं प्रलीयते दोषो गिरिजो लोहसम्भवः ।। गाढ़ा हो जाने पर उतार कर सुरक्षित रखें। । १ सेर त्रिफलाको १६ सेर पानीमें पकावें यह अत्युग्र वातज ग्रहणीको नष्ट करता है। और ४ सेर शेष रहने पर छान लें । २० तोले For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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