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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६५२ भारत-भैषज्य रत्नाकरः [लकारादि बीज, त्रिकुटा, त्रिफला और चवका चूर्ण १ प्रस्थ । पञ्चभागावशिष्टेम लोहं पञ्चपलानि च । मिला कर सुरक्षित रक्खें । तावदत्वा दधि तस्मिन् खरपाकं विपाचयेत् ॥ इसके सेवनसे वातपित्तज ग्रहणी नष्ट | त्रिकटुत्रिफलावद्भिविडङ्ग भद्रमुस्तकम् । होती है। चूर्ण लोहसमं चात्र प्रक्षिपेदवतारिते ॥ (६४२५) लोहरसायनम् (४) श्लैष्मिकं ग्रहणीदोषं हन्यादेतद्रसायनम् ।। (व. से. । रसायना.) ___आमला, हर्र और बहेड़ा ३०-३० तोले विभीतकामयाधात्री प्रत्येकं तु पलाष्टकम् । ले कर सबको एकत्र मिला कर अधकुटा करें और वारिण्यष्टगुणे साध्यं षडङ्गेनावतारिते ॥ उसमें २६ सेर पानी मिला कर पकावें । जब अयः पलानि पञ्चव पयसोष्टौ शरावकान् । पांचवां भाग पानी शेष रहे तो उसे छान कर सर्पिषो दशपलान्यत्र दद्याल्लोहं विपाचयेत् ॥ उसमें २५ तोले लोहभस्म और २५ तोले दही मिला कर पुनः पकावें । जब खरपाक हो जाय त्रिकटुत्रिफलाचूर्ण प्रत्येकं तु द्विकार्षिकम् । विडॉ भद्रमुस्तश्च जीरक द्वयमेव च ॥ तो अग्निसे नीचे उतारकर उसमें त्रिकुटा, त्रिफला, पृथगर्धपलं नाह्यं कुर्यात्पाकन्तु मध्यमम् ।। चीता, बायबिडंग और नागरमोथेका चूर्ण २५ पैत्तिके ग्रहणीरोगे योजयेन्मतिमान् भिषक् ॥ | तोले मिला कर खरल करके सुरक्षित रखें। बहेड़ा, हर्र और आमला ४०-४० तोले इसके सेवनसे कफज संग्रहणी नष्ट होती है। ले कर २४ सेर पानीमें पकायें और ४ सेर पानी | (६४२७) लोहरसायनम् (६) शेष रहने पर छान लें । तदनन्तर उसमें २५ तोले (व. से. । रसायना.) लोह भस्म, ८ सेर दूध और १। सेर घी मिला कर अष्टादशपलान्यत्र त्रिफलाया विपाचयेत् । पकावें । जब मध्यम पाक तैयार हो जाय तो सलिले द्वथाढके चास्मिन्नवभागावशेषितम् ॥ अग्निसे नीचे उतार कर उसमें सांठ, मिर्च, पीपल, | विपचेत्पूर्ववल्लोहं पुटितं वक्ष्यमाणकैः। हर्र, बहेड़ा, आमला, वायबिडंग, नागरमोथा, सफेद क्रायाः केशराजस्य चाकस्य रसेन च ॥ जीरा, और काला जीरा; इनका २॥-२॥ तोले एतत्पञ्चपलं ग्राह्य सपिदेशपलानि च । चूर्ण मिला कर सुरक्षित रक्खें । शतावरीरसस्याष्टौ नारिकेलोदकस्य च ॥ इसके सेवनसे पैत्तिक संग्रहणी नष्ट होती है। पलाद्ध मरिचं कृष्णा नागरं पलसम्मितम् । (६४२६) लोहरसायनम् (५) षड्विंशमाषकं चूर्ण त्रिफलायाः प्रकल्पयेत् ॥ (व. से. । रसायना.) त्रिचत्वारिंशता मारैरधिकं चूर्णितं पलम् । प्रत्येकं षट्रपलं धात्रो शिवा वैभीतकवचम् । चित्रकस्य विडङ्गस्य पचेत्पाकारं ततः॥ उदकानां शरावस्तु षडूविंशत्या विपाचयेत् ॥ | वातश्लेष्मोत्तरे चैव कुक्षिरोगे तथा हितम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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