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रसप्रकरणम् ]
चतुर्यों भागः
५५१
यशस्वी, वाग्मी, श्रतधारी और महा बलशाली हो । मिर्च और पीपलका चूर्ण ५-५ तोले ले कर प्रथम कर दीर्घायु प्राप्त करता है।
पारे गन्धककी कजली बनावें और फिर उसमें (६४२३) लोहरसायनम् (२) अन्य औषधोका चूर्ण मिला कर सबको अच्छी ..(व. से. । रसायना.)
तरह खरल करके उसमें ( सबके बराबर ) घी विडङ्गसारो मेघाख्यो रक्तवाहिररुष्करः ।
| और शहद मिला कर सबको घृतसे चिकने किये हस्तिकर्णः सितार्कस्तु श्वेतवर्षासमुद्भवम् । हुए पात्रमें भर कर रख दें। वाकुचीमुण्डिकाभृङ्गो राजको वृद्धदारकः।
इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे जस गुहूच्यतिबलारास्ना तालमूली शतावरी ॥ | व्याधिका नाश और आयुकी वृद्धि होती है । पिण्डारकश्चैडगजो वैडालः केशराजकः । (६४२४) लोहरसायनम् (३) एकैकं पलमेतेषां ग्राह्य समधुना घृतम् ॥
(व. से. । रसायना.). रसस्यैकं पलं ग्राह्य लोहस्य पलविंशतिः । चत्वारिंशत्तथाभ्रस्य शुल्वं चापि चतुष्पलम् ॥ |
| लोहं पूर्व पुटेच्छुद्धं गृहीत्वा पलपश्चकम् । गन्धकस्य पलान्यष्टौ षट्पलानि मनः शिला।
पुनर्नवावरीमूलं त्रिफला पुटितं पुनः ॥ . स्वर्णमाक्षिकचत्वारि षट्पलानि शिलाजितोः॥
वरा चतुर्गुणं लोहात्पचेदष्टगुणे जले । त्रिफलात्रिकटुनाश्च प्रत्येकञ्च पलत्रयम् ।
| सप्तभागावशेषेण द्विशरावं पयः क्षिपेत् ॥ सर्वाण्येतानि सञ्चूर्ण्य घृतेन मधुना सह ॥ | शतावरीरसश्चापि लोहतुल्यं प्रदापयेत् । स्निग्धे भाण्डे समालोडय स्थापयित्वा विचक्षणः पलानि दश चाज्यस्य मृदुपाकेऽवतारिते ॥ भक्षयेत् क्रमयोगेन लोहं सर्वरसायनम् ॥
द्विजीरकं विडङ्गश्च पलाशबीजमेव च । - बायबिडंगके चावल, नागरमोथा, लाल चीता. त्र्यूषणं त्रिफला चव्यं चूर्णमेषां पयःसमम् ॥ शुद्र भिलावे, हस्तिकर्ण पलाश, सफेद आककी वातपित्तोत्तरं हन्ति ग्रहणीगदमुत्कटम् ॥ .. जड़ को छाल, सफेद पुनर्नग, बाबची, मुण्डी, ५ पल शुद्र लोह-भस्मको पुनर्नपा, शतावर भारा. अमलतासका गदा. विधारा. गिलोय. | और त्रिफलाके रसमें पृथक् पृथक् घोट कर १-१ कंघीकी जड़, रास्ना, तालमूली, शतावर, पिण्डारक, | पुट दें । तदनन्तर २० पल त्रिफलेको आठगुने पंवाड, वैडाल और काला भंगरा; इनका चूर्ण (१६ गुने) पानीमें पकाकर सप्त भागावशेष रक्खें ५-५ तोले तथा शुद्ध पारा ५ तोले, लोह भस्म और फिर उसमें उपरोक्त लोह भस्म, १ प्रस्थ १०० तोले, अभ्रक भस्म २० तोले, ताम्र भस्म । (२ प्रस्थ ) दूध, ५ पल (१० पल) शतावरका २० तोले, शुद् गन्धक ४० तोले, शुद् मनसिल रस और १० पल (२० पल ) घी मिला कर ३० तोले, स्वर्ण माक्षिक भस्म २० तोले, शिला- | पकायें एवं मृदु पाक तैयार होने पर अग्निसे नीचे जीत ३० तोले, एवं हर्र, बहेड़ा, ओमला, सेांठ, | उतार कर उसमें दोनों जीरे, बायबिडंग, पलाशके
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