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आसपारिष्टप्रकरणम् ]
.... चतुर्थों भागः
अथ लकाराद्यासवारिष्ट-प्रकरणम् (६२९६) लक्ष्मणारिष्टः द्रोणशेषे रसे तस्मिन्पूते शीते प्रदापयेत् ।
(भै. र. । स्त्रीरोगा.) गुडस्य द्विशतं तिष्ठे त्तत्सर्वं घृतभाजने ॥ लक्ष्मणायाः पलशतं चतुर्दोणजले पचेत् ।। पक्षादूध जातरसे दद्यान्मात्रां यथावलम् । पादशेषे कषायेऽस्मिन् क्षिपेद् गुडतुलाद्वयम् ॥ अस्याभ्यासादरिष्टस्य गुदजा यान्ति संक्षयम् ।। घातकी षोडशपलां मुस्तकं मधुकं बलाम् ।। ग्रहणीपाण्डुहृद्रोगप्लीहगुल्मोदरापहः । फलत्रयं निशाद्वन्दं जीरकं चन्दनद्वयम् ॥ कुष्ठशोफारुचिहरो बलवर्णाग्निवर्धनः ।। अजमोदा यमानीश्च बिल्वश्च पलमानतः। सद्यः क्षयहरोऽरिष्टः कामलाश्वित्रनाशनः । मासादूर्श्वन्तु सिद्धोऽयमरिष्टः स्वीगदान्तकृत् ॥ कृमिग्रन्थबुदव्यङ्गराजयक्षमज्वरान्तकृत् ॥
६। सेर लक्ष्मणाको १२८ सेर पानीमें पकावे लौंग, पीपल, अगर, काली मिर्च और एल. और जब ३२ सेर पानी शेष रहे तो छान लें। वालुकका चूर्ण १०-१० तोले लेकर सबको तदनन्तर उसमें १२॥ सेर गुड़ और १ सेर धाय- १२८ सेर पानीमें पकावें और ३२ सेर पानी के फूलोंका चूर्ण तथा ५-५ तोले नागरमोथा, शेष रहने पर छान लें। तदनन्तर उसके ठण्डा मुलैठी, खरैटो, हर्र, बहेड़ा, आमला, हल्दी, दारु. होने पर उसमें १२॥ सेर गुड़ मिलाकर यथा हल्दी, जीरा, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, अज- विधि घृतलिप्त मृत्पात्र में सन्धान करके रक्खे और मोद, अजवायन और बेलगिरी का चूर्ण मिलाकर १५ दिन पश्चात् छान लें । सबको मज़बूत और घृतसे चिकने किये हुवे
इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे अर्श, मृत्पात्र में भरकर उसका मुख बन्द कर दें और
संग्रहणी, पाण्डु, हृद्रोग, प्लीहा, गुल्म, उदररोग, फिर १ मास पश्चात् निकाल कर छान लें।।
कुष्ठ, शोथ, अरुचि, क्षय, कामला, श्वित्र, कृमि, यह अरिष्ट स्त्रीरोगोंकेश नष्ट करता है।
| ग्रन्थि, अर्बुद, व्यङ्ग और ज्वरका नाश होता लघुचुक्रसन्धानम्
| तथा बल वर्ण और अग्निकी वृद्धि होती है। (ग. नि. । आसवा. ६)
(६२९८) लवङ्गासवः (२) प्र. सं. १८१६ “चुक्रसन्धानम् (स्वल्प)" देखिये
(गदनिग्रह । आसवा ६) (६२९७) लवङ्गासवः (१) देवपुष्पं वराङ्गं च केशरं पृथुकां तथा ।
(ग. नि. । आसवा. ६) कलौंजी मर्कटीबीजं मूसलीद्वयगोक्षुरम् ॥ लवङ्गपिप्पलीलोहमरिचं सैलवालुकम। बलाबीजानि पोस्तत्वग्वीजं च करहाटकम् । द्विपलांशं जलस्यंतचतुर्दोणे विपाचयेत् ॥ पृथक् पृथक प्रकुर्वीत पलानां पञ्चकं तथा ।
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