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(६२९३) लोधाद्यं तैलम्
( वृ. यो. त. । त. १२८ )
लोखादिरमअष्ठायाश्चापि साधितम् । तैलं संशोधनं हन्याद्दन्तनाडीगतिं क्रमात् ॥
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
कल्क - लोध, खैरसार, मजीठ और मुलैठी २|| - २॥ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें ।
काथ - उपरोक्त ओषधियां ४०-४० तोले लेकर सबको अधकुटा करके १६ सेर पानीमें पकावें और ४ सेर पानी शेष रहने पर छान लें
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१ सेर तिल के तेल में उपरोक्त कल्क और काथ मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको छान लें ।
करता है ।
यह तैल दन्त नाड़ी (दांत के नासूर ) को नष्ट
[ लकारादि
बालोंको उखाड़नेके पश्चात् कुसुम्भ (कैड) के तेल की मालिश करने से पुनः बाल नहीं निकलते ।
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(६२९५) लोहकिद्वाचं तैलम् ( रा. मा. शिरो रोगा. )
यल्लो हट्टोत्पलसारिवाभ्यां समावाभ्यां त्रिफलान्विताभ्याम् । विपच्यते तैलमपास्यति द्राक् शीर्षामयान्दारुणकादिकांस्तत् ॥
मण्डूर, अनन्तमूल, काला भंगरा और त्रिफलाके कल्कसे तैल पाक करके रक्खें ।
इसकी मालिशसे दारुणक इत्यादि शिरो रोग नष्ट होते हैं ।
(६२९४) लोमनाशकतैलम्
( प्रत्येक ओषधि ५ तोले -- मिलित ३० तोले । तिलका तेल ३ सेर । पानी १२ सेर ।
(भै. र. । स्त्री रोगा. ) कुमुम्भतैलाभ्यङ्गो वा रोम्णामुत्पाटितेऽन्तकृत् || एकत्र मिला कर पानी जलने तक पकावें । )
इति लकारा दितैलमकरणम्
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