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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८० www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः ( व्यवहारिक मात्रा - १ - १ ॥ तोला । ) इनके सेवन से अर्श, पाण्डु, हृदयशूल, पार्श्वशूल, कास, गुल्म, अरुचि, श्वास, हिचकी, गलग्रह, ज्वरातिसार और तन्द्राका नाश होता है । अनुपान - मद्य, तक्र अथवा आसव । लवङ्गाद्यं मोदकम् (भै. र. । अग्निमांद्या. ) प्रकरण में देखिये | (६२५२) लवणवटी. ( वो. भ. । चि. अ. १० ग्रहण्य. ) पटूनि पञ्च द्वौ क्षारौ मरिचं पञ्चकोलकम् । attri foङ्गु गुलिका वीजपूररसे कृता ।। कलदाडिमतोये वा परं पाचन दीपनी ॥ पांचों नमक (सेंधा नमक, संचल, बिडं नमक, सामुद्र नमक, काच लवण ), जवाखार, सज्जीखार, काली मिर्च, पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सोंठ, अजवायन और हींग समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और फिर उसे बिजौरे नीबू के रस या बेर अथवा अनार के रस में घोट कर गोलियां बनालें । । ये गोलियां अग्निदीपनी और पाचनी हैं । (६२५३) लाक्षादिवटी ( रसे. सा. स.; र. रा. सु. । कृम्य. ; र. चं. । कृमि. ) लाक्षाभल्लातश्रीवासश्वेतापराजिता शिफा । अर्जुनस्य फलं पुष्पं विडङ्गमजगुग्गुलुः ॥ [ लकारादि एभिः कीटाश्च शाम्यन्ते तिष्ठतापि गृहे सदा । भुजङ्गा मूत्रका देशाः सङ्घनामा मतङ्गजाः ॥ दूरादेव पलायन्ते किन्न कीटाश्च येाराः ॥ - लाख, भिलावा, श्रीवास (धूपसरल - राल), सफेद कोयलकी जड़, अर्जुन के फल और फूल, बायबिडंग, मेंढासिंगी और गूगल समान भाग ले कर यथा विधि गोलियां बनावें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्हें घर में रखनेसे (इनकी गंध से) सांप, चूहे और डांस आदि कीट भाग जाते हैं । (६२५४) लाङ्गल्यादिमोदकः (बृ. नि. र. । अर्शो. ) लाङ्गलन्द्रयवाकृष्णा वचपामार्गतण्डुलाः । भूनिम्बसैन्धवं तुल्यं सर्वस्य द्विगुणं गुडः ॥ भक्षयेत्कर्षमात्रं तु श्लेष्मोद्भूतार्शसाञ्जये ॥ लाङ्गली ( कलियारी), इन्द्रजौ, पीपल, चीता, चिरचिटेके चावल, चिरायता और सेंधा नमकका चूर्ण १ - १ भाग तथा गुड़ सबसे २ गुना लेकर सबको एकत्र मिलाकर कूट लें। मात्रा -- १ | तोला | इसके सेवनसे कफज अर्शका नाश होता है । लीलाantaet (र. रा. सु. ; वै. र. । ज्वरा. ) प्रकरण में देखिये । इति लकारादिगुटिकाप्रकरणम् 40. For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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