SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ४७९ (६२४८) लवङ्गादिगुटी (२) । लौंग, काली मिर्च और बहेड़ेके फलकी बकली (वृ. नि. र. । श्वासा.) १-१ भाग तथा खरसार (कत्था) सबके बराबर लवङ्गमरिचे तुल्ये त्रिफलारसभाविते ।। लेकर यथाविधि चूर्ण बनावें और उसे बबूलकी बब्यूलत्वचया कार्या गुटी श्वासकफापहा ॥ छालके रसमें घोट कर गोलियां बना लें। लौंग और काली मिर्चका चूर्ण समान भाग ये गोलियां केवल ८ घड़ीमें ही खासीको ले कर दोनोंको एकत्र मिला कर त्रिफलाके. काथ नष्ट कर देती हैं। तथा कीकर (बबूल) की छाल के रसमें एक एक लवङ्गादिवटी (३) (वृहत् ) दिन घोट कर गोलियां बना लें। ( रसे. सा. सं. । अग्निमां.) इनके सेवनसे श्वास और कफका नाश | रस प्रकरणमें देखिये । होता है। (६२५१) लवङ्गाद्या गुटिका. (६२४९) लवङ्गादिवटी (२) ( ग. नि. । गुटिका. ४) (रसे. सा. सं. । अग्निमांद्या. ; र. चं. ; भै. | पलार्धं तु लवङ्गस्य तालीसत्रुटिवल्कलम् । र. र. रा. सु. । अग्निमान्धा.) यवानीचव्यकाजाजीधान्यकं च पलोन्मितम् ॥ लवङ्गशुण्ठीमरिचानि भृष्ट द्विपलं मरिच कृष्णा वृक्षाम्लं साम्लवेतसम् । सौभाग्यचूर्णानि समानि कृत्वा । कृष्णायाश्च.जटाशुण्ठी पथ्या च कुडवोन्मिता ॥ भाव्यान्यपामार्गहुताशवारा एतत्सर्वं समाहृत्य त्रिगुणेन गुडेन तु । प्रभूतमांसादिकजारणाय ॥ ततोऽर्धपलिकाः कार्या गुटिकास्तु भिषग्वरैः । लौंग, सेांठ, मिर्च और सुहागेकी खील समान एकैकशस्तास्तु पिबेन्मद्यतकरसासवैः । भाग ले कर चूर्ण बनावें और फिर उसे १-१ | भक्षिता येन तस्याः पाण्डुहन्पार्श्वशूलनुत् ॥ दिन अपामार्ग (चिरचिटे) और चीतेके काथमें | कासगुल्मारुचिश्वासहिकामयगलग्रहान् । घोट कर गोलियां बना लें। ज्वरातिसारं तन्द्रां च सेविता हन्ति वेगतः ॥ इनके सेवनसे जठराग्नि दोप्त होती है । लौंग, तालोसपत्र, छोटी इलायची और (६२५०) लवङ्गादिवटी (२) | दाल चीनी २॥-२॥ तोले; अजवायन, चव, जीरा (वै. जो. । विलास ३) और धनियां ५-५ तोले; काली मिर्च, पीपल, तुल्या लवङ्गमरिचाक्षफलत्ववः स्युः तिन्तड़ोक और अम्लबेत १०-१० तोले तथा सर्वैः समो निगदितः खदिरस्य सारः । पीपलामूल, सांठ और हर २०-२० तोले लेकर बब्बूलवृक्षजकषाययुतं च चूर्ण चूर्ण बनावें एवं उसे सबसे ३ गुने गुड़में मिला कासान्निहन्ति गुटिका घटिकाष्टकान्ते ॥ । कर २॥-२॥ तोलेकी गुटिका बना लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy