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चूर्णप्रकरणम् ]
लौंग, कंकोल, खस, सफेद चन्दन, तगर, नीलोत्पल, सफेद जीरा, छोटी इलायची, अगर, दालचीनी, नागकेसर, पीपल, सोंठ, जटामांसी, नागरमोथा, अनन्तमूल, जायफल और बंसलोचन १ - १ भाग तथा मिश्री ८ भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
चतुर्थी भागः
यह चूर्ण रोचक, तर्पण, अग्निदीपन, बलकारक, अत्यन्त वृष्य और त्रिदोषनाशक है तथा उरोविबन्ध ( छातीकी जकड़ाहट ), तमक श्वास, गलग्रह, खांसी, हिचकी, अरुचि, यक्ष्मा, पीनस, ग्रहणी, अतिसार, भगन्दर, अर्बुद, प्रमेह, और गुल्मको शीघ्र ही नष्ट कर देता है ।
(६२२२) लवङ्गादिचूर्णम् (२)
( धन्व. र. र. । ग्रहण्य. )
लवङ्गातिविषामुस्तं वि पाठाथ शाल्मली । जीरकं घातकीपुष्पं लोवेन्द्रयवबालकम् ॥ धान्यकं सर्जकं शृङ्गी पिप्पली विश्वभेषजम् । समङ्गा यावशुकं च सैन्धवं सरसाञ्जनम् ॥ समभागानि चैतानि भक्षयेत्प्रातरुत्थितः । शमयेदग्निमान्द्यञ्च सङ्ग्रहग्रहणीगदम् ॥ नानावर्णमतीसारं सशोथं पाण्डुकामलम् । santosi हन्ति कुष्ठं कोष्ठगतं ज्वरम् ॥
लौंग, अतीस, नागरमोथा, बेलगिरी, पाठा, भलकी छाल, जीरा, धायके फूल, लोध, इन्द्रजौ, सुगन्धवाला, धनिया, राल, काकड़ासिंगी, पीपल, सोंठ, मजीठ, जवाखार, सेंधा नमक और रसौत समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
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इसके सेवन से अग्निमांद्य, संग्रहणी, नानावर्ण का अतिसार, शोथ, पाण्डु, कामला, अष्टीलिका, कुष्ठ और ज्वरका नाश होता है।
इसे प्रातःकाल सेवन करना चाहिये । (६२२३) लवङ्गादिचूर्णम् (३) (भै. र. । गुल्मा. ) लवङ्गदन्तीत्रिवृता यमानी शुण्ठीवचाधान्यक चित्रकाणि । फलत्रयं मागधिका च कट्वी
द्राक्षा चवी गोक्षुरयावशुकम् ॥ एलाजमोदा कुटजस्य बीजं
विधाय चूर्णानि समान्यमीषाम् । खादेत्ततो मापत्रयं हिताशी
कोष्णं जलं चानुपिवेत् प्रयत्नात् ॥ निहन्ति गुल्मं सरुजं सदाह
मशांसि शोथांश्च तथामवातम् । सर्वोदराण्येव चिरोत्थितानि
चूर्ण लवङ्गादिकमाशु हन्ति ॥ लौंग, दन्तीमूल, निसोत, अजवायन, सोंठ, बच, धनिया, चीता, हर्र, बहेड़ा, आमला, पीपल, कुटकी, मुनक्का, चव, गोखरू, जवाखार,, इलायची, अजमोद और इन्द्रजौ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
मात्रा - ३ माशा |
अनुपान - उष्ण जल |
इसके सेवनसे पीड़ा और दाहयुक्त गुल्म, अर्श, शोथ, आमवात और समस्त पुराने उदरविकार शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ।
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