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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[लकारादि
अथ लकारादिचूर्णप्रकरणम् लघुगङ्गाधरचूर्णम्
(६२१४) लघुतालीसादिचूर्णम् (यो. र. । अतिसारा. ; वृ. यो. त. । त. ६४)
( हा. सं. । स्था. ३ अ. १२) प्र. सं. १२३१ "गङ्गाधरचूर्णम् ” देखिये। लघुगङ्गाधरचूर्णम्
तालीसपत्रं मरिचं च विश्वा ( शा. सं. । खं. २ अ. ६)
श्यामायुतं चोत्तरभागवृद्धया। प्रयोग संख्या १२३२ " गंगाधरचूर्णम् "
त्वपत्रकेणापि लवङ्गमेला देखिये।
क्षौद्रं कणा चाष्टगुणा सिता च ॥ (६२१२) लघुचित्रकादिचूर्णम् लिह्यात् प्रभाते श्वसने च कासे ( वृ. नि. र. । अजीर्णा.)
प्लीहारुचिपीनसछर्दिहिकाम् । दहनाजमोदसैन्धवनागरमरिचाम्लतक्रेण ।
शोफातिसारं ग्रहणीं च पाण्डु सप्ताहादग्निकरं यदर्शीनाशनं परं कथितम् ॥ .
क्षयं निहन्यात् क्षतजं च यक्ष्मम् ॥ चीतामूल, अजमोद, सेंधा नमक, सोंठ, और
तालीसपत्र १ भाग, काली मिर्च २ भाग, मिर्च समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । सोंठ ३ भाग, काली निसोत ४ भाग, दालचीनी
इसे खट्टी छाछके साथ सेवन करनेसे १ | ५ भाग, तेजपात ६ भाग, लौंग ७ भोग, इलासप्ताहमें जठराग्नि दीप्त हो जाती है और अर्शका | यची ८ भाग, पीपल ९ भाग और मिश्री सबसे नाश होता है।
आठ गुनी लेकर चूर्ण बनावें। ( मात्रा--३ माशे । )
___इसे शहदमें मिलाकर प्रातःकाल चाटनेसे (६२१३) लघुचेतकीयोगः ( यो. र. । रक्ताति.)
| श्वास, खांसी, प्लीहा, अरुचि, पोनस, छर्दि, हिक्का, लघुचेतकिजीरके समे
शोथ, अतिसार, ग्रहणी, पाण्डु, क्षय और क्षतज मृदुभृष्टे च सुचूर्णितेऽर्पिते ।
राजयक्ष्माका नाश होता है। सहतण्डुलवारिणा मतेऽति
( मात्रा--१। तोला ) मृतिघ्ने इति सिद्धयोग एषः॥
लघुतालीसाद्यं चूर्णम् छोटी चेतकी (काली) हर्र और जीरा समान भाग लेकर दोनोंको जरा भून कर चूर्ण बना लें।
(ग. नि. | चूर्णा.) इसे चावलोंके पानीके साथ सेवन करनेसे ___ प्रयोग संख्या २३१० " तालीसादिचूर्णम् " अतिसार नष्ट होता है। यह एक सिद्ध योग है। देखिये ।
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