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कषायप्रकरणम] चतुर्थों भागः
४६७ (६२०७) लाक्षादिगणः | कटुरोहिणीचित्रकचिरविल्लहैमवत्य इति दशे( सु. सं. । सू. अ. ३८)
मानि लेखनीयानि भवन्ति ।
___नागरमोथा, कूर, हल्दी, दारुहल्दी, बच, लाक्षारेवतकुटजाऽश्वमारकट्फलहरिद्रा
- अतीस, कुटकी, चीता, करन और सफेद बच । द्वयनिम्बसप्तच्छदमालत्यस्त्रायमाणा चेति । ।
| ये दश ओषधियां लेखनीय हैं । कषायस्तिक्तमधुरः कफपित्तातिनाशनः ।
(६२१०) लोध्रादिक्वाथः कुष्ठक्रिमिहरश्चैव दुष्टबणविशोधनः॥
(च. सं. । प्रमेहा. ३४ ) लाख, अमलतास, इन्द्रजौ, कनेर, कायफल,
लोध्राभयाकटफलमुस्तकानां हल्दी, दारुहल्दी, नीम, सतौना, मालती और ।
विडङ्गपाठार्जुनधन्वनानाम् । त्रायमाणा; इन ओषधियोंके समूहको लाक्षादिगण
कदम्बशालार्जुनदीप्यकानां कहते हैं।
विडङ्गदाधिवशल्लकीनाम् ।। ___लाक्षादिगण कषाय, तिक्त, मधुर, कफ पित्त चत्वार एते मधुना कषायाः नाशक, कुष्ट और कृमिहर तथा दुष्ट बण
कफप्रमेहेषु निषेवणीयाः ॥ शोधक है।
(१) लोध, हर्र, कायफल और नागरमोथा (६२०८) लाजादिक्वाथ:
(२) बायबिडंग, पाठा, अर्जुन और धामन (वृ. नि. र. । दाहा.)
(३) कदम्बकी छाल, शाल, अर्जुन और
अजवायन; लाजाबचन्दनोशीरक्वाथोन्तः शर्करान्वितः ।
(४) बायबिडंग, दारुहल्दी, धव और शल्लकी; शीतः पीतो निहन्त्याशु दाहं पित्तज्वरं उपरोक्त चारों प्रयोग कफज प्रमेहको नष्ट
नृणाम् ॥ करते हैं। इनके काथमें शहद मिला कर सेवन धानकी खील, लाल चन्दन और खस समान | करना चाहिये। भाग ले कर काथ बनावें।
(६२११) लोधादियोगः इसे ठण्डा करके खांड मिला कर पीनेसे दाह
(व. से. । अतिसारा.) और पित्तज्वर नष्ट होता है।
क्षीरपिष्टं पिबेल्लो, यष्टयाहौत्पलमिश्रितम् ।
रक्तातिसारशमनं शर्करामधुयोजितम् ।। (६२०९) लेखनीयमहाकषायः
लोध, मुलैठी और नीलोत्पलको दूधमें पीस (च. सं. । सू. अ. ४)
कर उसमें खांड और शहद मिला कर पीने से रक्तामुस्तकुष्ठहरिद्रादारुहरिद्रावचातिविषा-तिसार नष्ट होता है ।
इति लकारादिकषायप्रकरणम्
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