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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [लकारादि लौंग और हर्र समान भाग (१-१ तोला) ल्हसन, भरंगो, गूगल, सोंठ और देवदारु ले कर क्वाथ बनावें । समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । - इसमें सेंधा नमकका चूर्ण मिलाकर पीनेसे यह काथ कफ और वायुको नष्ट करता तथा विरेचन होता और अजीर्ण शीघ्र ही नष्ट हो | जठराग्निको बढ़ाता है । जाता है। (६२०४) लशुनादिक्वाथः (२) (६२०१) लशुनयोगः (१) ( यो. र. ; वृ. नि. र. । सन्निपाता.) (व. से. । वातव्या.) लशुनं तितकं काण्डं भार्गी चातिविषा तथा। पिष्ट्वा सुसूक्ष्मं लशुनस्य कन्दं नरमूत्रेण च क्याथः सभिपाते सुदारुणे ॥ घृतेन लिह्याघृतभोजनाशी । ___ल्हसन, चिरायता, भरंगी और अतीस तस्य प्रणश्यन्ति हि वातरोगाः | समान भाग लेकर सबको मनुष्यके मूत्रमें पकाकर संस्कारहीनात्पुरुषादिवार्थः॥ काथ बनावें। लहसनको अत्यन्त बारीक पीसकर घृतमें यह क्वाथ घोर सन्निपात ज्वरको नष्ट मिलाकर खाने और घृतयुक्त भोजन करनेसे वातज करता है। रोग नष्ट होते हैं । (६२०५) लशुनादिस्वरसः (६२०२) लशुनयोगः (२) | (व. से. ; वृ. नि. र. । कर्णा. ) (व. से. । अपस्मारा.) | लशुनाकशिगूणां सुरङ्गया मूलकस्य च । तैलेन लशुनं सेव्यं पयसा च शतावरी।। कदल्याः स्वरसः श्रेष्ठः कदूष्णः कर्णपूरणे ॥ ब्राह्मीरसश्च मधुना सर्वापस्मारभेषजम् ॥ तेलके साथ ल्हसन या दूधके साथ शतावर ल्हसन,, अदरक, सहजना, मकोय, मूली अथवा ब्राह्मीके रसमें शहद मिलाकर सेवन और केला; इनमें से किसी एकके स्वरसको मन्दोष्ण करके कानमें भरनेसे कर्णशूल नष्ट होता है । करनेसे अपस्मार नष्ट होता है । (६२०६) लाक्षाकूष्माण्डकल्कः (६२०३) लशुनादिक्वाथः (१) (वै. म. र. । पट. १२) (वृ. नि. र. । क्षयरोगा. ) लशुनबर्बरगुग्गुलुनागर कूष्माण्डकगिरोत्थेन रसेन परिपेषितम् । विबुधदारुयुतैः शृतमम्बु यत् । लाक्षाकर्षद्वयं पीत्वा जयेद्रक्तक्षयं तथा ॥ ज्वलयति ज्वलनं कफकोपहत्। पेठे ( कुम्हेड़े ) के गूदेके रसमें २॥ तोले पवनमाशु जयत्यतिगर्वितम् ॥ लाखको पीस कर पीनेसे रक्तक्षय नष्ट होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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