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भारत-भैषज्य - र
मूर्वा, बला (बीजबन्द) और चीता समान
(५१५३) मूर्वाद्यं चूर्णम् (२) (ग. नि. । कासा. ) मूर्वामागधचव्यचित्रकवचापाठाशिरीषं तथा । भार्गी मागधमूलमुस्तमरिचं शुण्ठीविडङ्गानि च ॥ एला सेन्द्रयवानिका सकटुका स्याज्जीरकं रेणुका चैतत्सातिविषं सहिङ्गु कफजे कासे हितं
चूर्णितम् ॥
(५१५५) मूर्वाद्वर्तनम् (२) (ग. नि. । बालग्रहा. )
भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे प्रातः काल उष्ण जलके साथ सेवन मूर्वामूलहरिद्रासप्तच्छद् सर्षपैस्तुल्यम् । सर्वशिशुग्रहनाशनमुद्वर्तनमम्बुना पिष्टैः ॥
करनेसे पाण्डु रोग नष्ट होता है । ( मात्रा - ३ माशे । )
मूर्वाकी जड़, हल्दी, सतौनेकी जड़की छाल और सरसों समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे पानी में मिलाकर बच्चों के शरीर पर मलसे ग्रहदोष दूर होते हैं ।
मृतसञ्जीवनचूर्णम्
मूर्वा, पीपल, चव, चीतामूल, बच, पाठा, सिरसकी छाल, भरंगी, पीपलामूल, नागरमोथा, काली मिरच, सोंठ, बायबिडंग, इलायची, इन्द्रजौ, अजवायन, कुटकी, जीरा, रेणुका, अतीस और भुनी हुई हींग समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
यह चूर्ण कफज खांसीको नष्ट करता है । ( मात्रा - ३ माशे । शहद के साथ मिलाकर चाटें ।) (५१५४) मूर्वाद्वर्तनम् (१)
(ग. नि. । बालग्रहा. ) मूर्वावलाश्वगन्धासप्तच्छदमूलचोरकैः सजलैः । उद्वर्तनं प्रदिष्टं शिशुगात्रवर्द्धनं ग्रहनुत् ॥
- रत्नाकरः
मूर्वा, खरैटीकी जड़, असगन्ध, सतौनेकी जड़की छाल और चोरक समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे पानी में मिलाकर बालकोंके शरीरपर मलने से उनका शरीर पुष्ट होता और ग्रहदोष दूर होते हैं ।
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(३) " देखिये ।
[ मकारादि
( धन्व. । ग्रहण्य. )
प्रयोग संख्या ३४२३ " नागरादि चूर्णम
(५१५६) मृदुविरेचनयोगः
(सु. सं. । सूत्र. अ. ४४ ) शर्कराक्षौद्रसंयुक्तं तृवृच्चूर्णावचूर्णितम् । रेचनं सुकुमाराणां त्वक्पत्रमरिचांशकम् ॥
निसोत, दालचीनी, तेजपात और काली मिरच समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसमें खांड और शहद मिलाकर खाने से सुख पूर्वक विरेचन हो जाता है ।
यह योग सुकुमार व्यक्तियोंके लिये है । (५१५७) मेघनादादिचूर्णम् ( व. से. । रक्तातिसा. ) मेघनादस्य मूलानि मधुना सितया सह । निहन्ति शोणितस्रावं तण्डुलोदकपानतः ॥
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hi वाली चौलाईकी जड़ चूर्ण में शहद और खांड मिलाकर उसे चावलोंके पानीके साथ सेवन करनेसे रक्तातिसार नष्ट होता है ।
( मात्रा - ३ से ६ माशे तक । )