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चूर्णप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
(५१४७) मुस्तादिचूर्णम् (२) पीपल, पद्माख, भरंगी, हर्र, बहेड़ा और आमला ( वृ. नि. र.; व. से.; भा. प्र. । ग्रहणी.; समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। वृ. नि. र. । बालरोगा.)
इसे शहदके साथ चाटनेसे पांच प्रकारको मुस्तकातिविषाविल्वकुटजं सूक्ष्मचूर्णितम् । खांसी नष्ट होती है। मधुना च समालीढं ग्रहणी सर्वजां हरेत् ॥ (मात्रा-३-४ माशे ।) नागरमोथा, अतीस, बेलगिरी और इन्द्रजौ
(५१५०) मुस्तायोगः समान भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें ।
(रा. मा. । अ. ३८) इसे शहदके साथ सेवन करनेसे सर्वदोषज
तन्दुलोदकयुतं परिपिष्टं ग्रहणी नष्ट होती है। ( मात्रा-३-४ माशे।)
मूलमम्बुधरस्य घृताढयम् ।
पीयमानमतिदारुणवेगं (५१४८) मुस्तादिचूर्णम् (३) ।
कृत्रिमं गरलमाशु निहन्ति ॥ (वृ. नि. र. । शूला.)
नागरमोथेकी जड़को पीसकर थोड़ेसे धीमें मुस्तं वचा तिक्तकरोहिणी च
मिलाकर चावलोंके पानीके साथ पीनेसे अति दारुण तथाभया निर्दहनं च तुल्यम्।
कृत्रिम विष नष्ट हो जाता है। पिवेत्तु गोमूत्रयुतं कफोत्थे शूले तथा यस्य च पाचनार्थम् ॥
(५१५१) मूर्वादिचूर्णम्
(भा. प्र.। म. खं. वमना.) नागरमोथा, बच, कुटकी, हर्र और शुद्ध |
सोद्गारायां भृशं छयों मूळया धान्यमुस्तयोः। भिलावा समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। इसे गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे कफजशूल
समधुकाअनं चूर्ण लेहयेन्मधुसंयुतम् ॥ नष्ट होता है। यह चूर्ण आमको भी पचाता है।
मूर्वा, धनिया, नागरमोथा, मुलैठी और सुरमा
समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। (५१४९) मुस्ताचं चूर्णम् ( ग. नि. । कासा.)
इसे शहदमें मिलाकर चाटनेसे जिसमें डकार मुस्ताटरूपसुरदारुशिरीषकाक
भी आती हों ऐसी भयङ्कर छदि नष्ट हो जाती है। जङ्घाविडङ्गकटुकत्रयपद्मकानि ।
( मात्रा-१-१॥ माशा ।) भार्गी फलत्रयमिदं सकलं हि चूर्ण
(५१५२) मूर्वाद्यं चूर्णम् (१) मध्वान्वितं हरति पश्वविधं च कासम् ॥
(ग. नि. । पाण्डु.) नागरमोथा, बासे की जड़की छाल, देवदारु, मूर्वाबलान्वितं चूर्ण चित्रकस्योष्णवारिणा । सिरसकी छाल, काकजंघा, बायबिडंग, सोंठ, मिर्च, पाण्डुरोगविनाशाय प्रातरुत्थाय संपिवेत् ॥
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