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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः (५१४७) मुस्तादिचूर्णम् (२) पीपल, पद्माख, भरंगी, हर्र, बहेड़ा और आमला ( वृ. नि. र.; व. से.; भा. प्र. । ग्रहणी.; समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। वृ. नि. र. । बालरोगा.) इसे शहदके साथ चाटनेसे पांच प्रकारको मुस्तकातिविषाविल्वकुटजं सूक्ष्मचूर्णितम् । खांसी नष्ट होती है। मधुना च समालीढं ग्रहणी सर्वजां हरेत् ॥ (मात्रा-३-४ माशे ।) नागरमोथा, अतीस, बेलगिरी और इन्द्रजौ (५१५०) मुस्तायोगः समान भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें । (रा. मा. । अ. ३८) इसे शहदके साथ सेवन करनेसे सर्वदोषज तन्दुलोदकयुतं परिपिष्टं ग्रहणी नष्ट होती है। ( मात्रा-३-४ माशे।) मूलमम्बुधरस्य घृताढयम् । पीयमानमतिदारुणवेगं (५१४८) मुस्तादिचूर्णम् (३) । कृत्रिमं गरलमाशु निहन्ति ॥ (वृ. नि. र. । शूला.) नागरमोथेकी जड़को पीसकर थोड़ेसे धीमें मुस्तं वचा तिक्तकरोहिणी च मिलाकर चावलोंके पानीके साथ पीनेसे अति दारुण तथाभया निर्दहनं च तुल्यम्। कृत्रिम विष नष्ट हो जाता है। पिवेत्तु गोमूत्रयुतं कफोत्थे शूले तथा यस्य च पाचनार्थम् ॥ (५१५१) मूर्वादिचूर्णम् (भा. प्र.। म. खं. वमना.) नागरमोथा, बच, कुटकी, हर्र और शुद्ध | सोद्गारायां भृशं छयों मूळया धान्यमुस्तयोः। भिलावा समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। इसे गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे कफजशूल समधुकाअनं चूर्ण लेहयेन्मधुसंयुतम् ॥ नष्ट होता है। यह चूर्ण आमको भी पचाता है। मूर्वा, धनिया, नागरमोथा, मुलैठी और सुरमा समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। (५१४९) मुस्ताचं चूर्णम् ( ग. नि. । कासा.) इसे शहदमें मिलाकर चाटनेसे जिसमें डकार मुस्ताटरूपसुरदारुशिरीषकाक भी आती हों ऐसी भयङ्कर छदि नष्ट हो जाती है। जङ्घाविडङ्गकटुकत्रयपद्मकानि । ( मात्रा-१-१॥ माशा ।) भार्गी फलत्रयमिदं सकलं हि चूर्ण (५१५२) मूर्वाद्यं चूर्णम् (१) मध्वान्वितं हरति पश्वविधं च कासम् ॥ (ग. नि. । पाण्डु.) नागरमोथा, बासे की जड़की छाल, देवदारु, मूर्वाबलान्वितं चूर्ण चित्रकस्योष्णवारिणा । सिरसकी छाल, काकजंघा, बायबिडंग, सोंठ, मिर्च, पाण्डुरोगविनाशाय प्रातरुत्थाय संपिवेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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