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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६ इसे योनि में छिड़कने से योनि संकीर्ण हो जाती है और यदि उससे जलस्राव होता हो तो वह भी बन्द हो जाता है । - भैषज्य रत्नाकरः भारत (५१४२) मुशल्यादिचूर्णम् (नपुंसकामृ । त. ३; शा. ध. । ख. २ अ. ६) मुसलीकन्दचूर्ण च गुडूचीसत्वसंयुतम् । वानरीगोक्षुराभ्यां च शाल्मलीशर्करामलः || आलोय घृतदुग्धाभ्यां भक्षयेत्कामहृद्धये ॥ मूसली, बिदारीकन्द, गिलोय का सत, कौंच के बीज, गोखरू, सेमलकी मूसली, खांड और आमला समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे धीमें मिलाकर दूधके साथ पीने से कामवृद्धि होती है । ( मात्रा - २ - ३ माशे । ) (५१४४) मुष्टियोग (भै. र. । मूत्राघाता. ) जलेन खदिरीबीजं मूत्राघाताश्मरीहरम् । मूलं रुद्रजटायास तक्रं पीतं तदर्थकृत् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ मकारादि अशोक के बीजों के चूर्णको जलके साथ सेवन करने अथवा रुद्रजटाकी जड़के चूर्णको तक के साथ पीने से मूत्राघात और अश्मरी नष्ट होता है । (५१४५) मुस्तकादिचूर्णम् (यो. र.; वॅ. से.; वृ. नि. र. । बालरो . ) मुस्तकातिविषायासैकणाशृङ्गीरजो लिइन् । मधुना मुच्यते बालः कासैः पञ्चभिरुच्छ्रितैः ॥ नागरमोथा, अतीस, धमासा ( पाठ भेदके अनुसार बासा), पीपल और काकड़ासिंगी समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे शहद में मिलाकर चटानेसे बालकोंकी ५ प्रकारकी खांसी नष्ट होती है । ( मात्रा - ३ माशे । ) (५१४३) मुशल्यादियोगः (ग. नि.; यो. र. । अर्शो.) क्रेणाशसि निघ्नन्ति मुशलीकुटजा निकाः । पीता वा कुटजाब्दाग्निमञ्जिष्ठाः सपुनर्नवाः || व्याघ्री सपुष्पफलमूलदलैरुपेता । रास्ना विषा मधुरसा सुरसादलानि काली मूसली, इन्द्रजौ और चीता समान भाग लेकर चूर्ण बनावें अथवा इन्द्रजौ, नागरमोथा, चीता, मजीठ और पुनर्नवा ( बिसखपरा) बराबर बराबर लेकर चूर्ण बना लें । चूर्ण निहन्ति कथितेन जलेन कासम् ॥ नागरमोथा, बासा, हर्र, बहेड़ा, आमला, देवदारु, भरंगी, कटेलीका पञ्चाङ्ग, रास्ना, अतीस, इनसे एक चूर्ण कके साथ सेवन मूर्वा (अथवा मुलैठी) और तुलसी के पत्ते समान करनेसे अर्शका नाश हो जाता है । भाग लेकर चूर्ण बनावें । (५१४६) मुस्तादिचूर्णम् (१) ( हा. सं. । स्था. ३ अ. १२ ) मुस्ताटरूपकफलत्रिकदारुभार्गी इसे उष्ण जलके साथ सेवन करने से खांसी नष्ट होती है। ( मात्रा २ - ३ माशे । ) १. यासेति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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