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इसे योनि में छिड़कने से योनि संकीर्ण हो जाती है और यदि उससे जलस्राव होता हो तो वह भी बन्द हो जाता है ।
- भैषज्य रत्नाकरः
भारत
(५१४२) मुशल्यादिचूर्णम्
(नपुंसकामृ । त. ३; शा. ध. । ख. २ अ. ६) मुसलीकन्दचूर्ण च गुडूचीसत्वसंयुतम् । वानरीगोक्षुराभ्यां च शाल्मलीशर्करामलः || आलोय घृतदुग्धाभ्यां भक्षयेत्कामहृद्धये ॥
मूसली, बिदारीकन्द, गिलोय का सत, कौंच के बीज, गोखरू, सेमलकी मूसली, खांड और आमला समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे धीमें मिलाकर दूधके साथ पीने से कामवृद्धि होती है ।
( मात्रा - २ - ३ माशे । )
(५१४४) मुष्टियोग (भै. र. । मूत्राघाता. ) जलेन खदिरीबीजं मूत्राघाताश्मरीहरम् । मूलं रुद्रजटायास तक्रं पीतं तदर्थकृत् ॥
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[ मकारादि
अशोक के बीजों के चूर्णको जलके साथ सेवन करने अथवा रुद्रजटाकी जड़के चूर्णको तक के साथ पीने से मूत्राघात और अश्मरी नष्ट होता है । (५१४५) मुस्तकादिचूर्णम्
(यो. र.; वॅ. से.; वृ. नि. र. । बालरो . ) मुस्तकातिविषायासैकणाशृङ्गीरजो लिइन् । मधुना मुच्यते बालः कासैः पञ्चभिरुच्छ्रितैः ॥
नागरमोथा, अतीस, धमासा ( पाठ भेदके अनुसार बासा), पीपल और काकड़ासिंगी समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे शहद में मिलाकर चटानेसे बालकोंकी ५ प्रकारकी खांसी नष्ट होती है ।
( मात्रा - ३ माशे । ) (५१४३) मुशल्यादियोगः (ग. नि.; यो. र. । अर्शो.) क्रेणाशसि निघ्नन्ति मुशलीकुटजा निकाः । पीता वा कुटजाब्दाग्निमञ्जिष्ठाः सपुनर्नवाः ||
व्याघ्री सपुष्पफलमूलदलैरुपेता । रास्ना विषा मधुरसा सुरसादलानि
काली मूसली, इन्द्रजौ और चीता समान भाग लेकर चूर्ण बनावें अथवा इन्द्रजौ, नागरमोथा, चीता, मजीठ और पुनर्नवा ( बिसखपरा) बराबर बराबर लेकर चूर्ण बना लें ।
चूर्ण निहन्ति कथितेन जलेन कासम् ॥ नागरमोथा, बासा, हर्र, बहेड़ा, आमला, देवदारु, भरंगी, कटेलीका पञ्चाङ्ग, रास्ना, अतीस, इनसे एक चूर्ण कके साथ सेवन मूर्वा (अथवा मुलैठी) और तुलसी के पत्ते समान करनेसे अर्शका नाश हो जाता है ।
भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
(५१४६) मुस्तादिचूर्णम् (१) ( हा. सं. । स्था. ३ अ. १२ ) मुस्ताटरूपकफलत्रिकदारुभार्गी
इसे उष्ण जलके साथ सेवन करने से खांसी नष्ट होती है।
( मात्रा २ - ३ माशे । )
१. यासेति पाठान्तरम् ।
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