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४२४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[रकारादि अग्निमांद्य, हृद्रोग, कोष्ठबद्ध में--पीपल, हर प्रकारके अतिसारमें--अफीम, लौंग, चीता, हर्र और सञ्चल ( काले नमक ) के शुद्ध हिंगुल और भांग समान भाग लेकर चूर्ण साथ दें।
बनावें तथा उसके साथ रससिन्दूर सेवन मूत्रकृच्छमें--शिलाजीत, इलायची, और | करावें। बंसलोचन के चूर्ण के साथ सेवन करावे । ___अग्निमांद्यमें--सञ्चल (काला नमक) और
धातुवृद्धि के लिये--लौंगका चूर्ण, केसर, अजवायनके साथ दें। इसी अनुपानके साथ जावत्री, शुद्र हिंगुल, अकरकरा, पीपल और भांग | देने से क्षुधावृद्धि भी होती है। १-१ भाग तथा कपूर, अफीम और सीसाभस्म | पुष्टि के लिये---गिलोयके सतके साथ दें । आधा आधा भाग लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें अन्य रोगोंमें रोगोचित अनुपानके साथ देना एवं इस चूर्ण के साथ यथोचित मात्रामें रस सिन्दूर | चाहिये । सेवन करावें ।
(६१०१) रससिन्दूरयोगः हरप्रकारके ज्वरमें-सञ्चल (काला नमक),
( भै. र. । मूत्राघाता.) लांग, चिरायता और हर्र के साथ दें।
वराम्ललवणोपेतं मूतं यश्च पिवेन्नरः । विरेचन के लिये--सौवर्चल (सञ्चल ) युक्त
तस्य नश्यन्ति वेगेन मूत्राघातास्त्रयोदश ॥ त्रिफलाकाथके साथ दें।
रस सिन्दूरको त्रिफला और सेंधा नमकके धातु वृद्धिके लिये---लौंग, केसर और शुद्ध | चूर्ण में मिलाकर कांजीके साथ सेवन करनेसे १३ हिंगुल ( शिंगरफ) के चूर्ण में मिलाकर पान में प्रकारके मूत्राघात नष्ट होते हैं । रख कर खाना चाहिये । या विदारी कन्दके चूर्ण
(मात्रा--१-१॥ रत्ती । ) के साथ सेवन करें।
(६१०२) रसाञ्जनादिचूर्णम् वमनमें --भांग और अजवायनके चूर्ण के
(ग. नि. । कासा. १०) साथ दें।
रसाञ्जनं हरिद्रा च पिप्पली लोहचूर्णकम् । नवीन उदरपीड़ामें--सञ्चल ( काला | मर्वाचित्रकमञ्जिष्ठाः पाठा च क्षयकासजित् ॥ नमक ), हल्दी, भांग और अजवायन के चूर्ण के रसौत, हल्दी, पीपल, लोह भस्म, मूर्वा, चीता, साथ खिलावें ।
मजीठ और पाठा; सबका समान भाग चूर्ण लेकर कृमि विकारमें--१॥ माशा पलाशपापड़ा एकत्र मिला कर खरल करें। (ढाक के बोज) का चूर्ण और ३ माशे गुड़ एकत्र यह चूर्ण क्षय की खांसीको नष्ट करता है । मिलाकर उसके साथ खिलावें।
( मात्रा--१ माशा ।)
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