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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [रकारादि अग्निमांद्य, हृद्रोग, कोष्ठबद्ध में--पीपल, हर प्रकारके अतिसारमें--अफीम, लौंग, चीता, हर्र और सञ्चल ( काले नमक ) के शुद्ध हिंगुल और भांग समान भाग लेकर चूर्ण साथ दें। बनावें तथा उसके साथ रससिन्दूर सेवन मूत्रकृच्छमें--शिलाजीत, इलायची, और | करावें। बंसलोचन के चूर्ण के साथ सेवन करावे । ___अग्निमांद्यमें--सञ्चल (काला नमक) और धातुवृद्धि के लिये--लौंगका चूर्ण, केसर, अजवायनके साथ दें। इसी अनुपानके साथ जावत्री, शुद्र हिंगुल, अकरकरा, पीपल और भांग | देने से क्षुधावृद्धि भी होती है। १-१ भाग तथा कपूर, अफीम और सीसाभस्म | पुष्टि के लिये---गिलोयके सतके साथ दें । आधा आधा भाग लेकर यथा विधि चूर्ण बनावें अन्य रोगोंमें रोगोचित अनुपानके साथ देना एवं इस चूर्ण के साथ यथोचित मात्रामें रस सिन्दूर | चाहिये । सेवन करावें । (६१०१) रससिन्दूरयोगः हरप्रकारके ज्वरमें-सञ्चल (काला नमक), ( भै. र. । मूत्राघाता.) लांग, चिरायता और हर्र के साथ दें। वराम्ललवणोपेतं मूतं यश्च पिवेन्नरः । विरेचन के लिये--सौवर्चल (सञ्चल ) युक्त तस्य नश्यन्ति वेगेन मूत्राघातास्त्रयोदश ॥ त्रिफलाकाथके साथ दें। रस सिन्दूरको त्रिफला और सेंधा नमकके धातु वृद्धिके लिये---लौंग, केसर और शुद्ध | चूर्ण में मिलाकर कांजीके साथ सेवन करनेसे १३ हिंगुल ( शिंगरफ) के चूर्ण में मिलाकर पान में प्रकारके मूत्राघात नष्ट होते हैं । रख कर खाना चाहिये । या विदारी कन्दके चूर्ण (मात्रा--१-१॥ रत्ती । ) के साथ सेवन करें। (६१०२) रसाञ्जनादिचूर्णम् वमनमें --भांग और अजवायनके चूर्ण के (ग. नि. । कासा. १०) साथ दें। रसाञ्जनं हरिद्रा च पिप्पली लोहचूर्णकम् । नवीन उदरपीड़ामें--सञ्चल ( काला | मर्वाचित्रकमञ्जिष्ठाः पाठा च क्षयकासजित् ॥ नमक ), हल्दी, भांग और अजवायन के चूर्ण के रसौत, हल्दी, पीपल, लोह भस्म, मूर्वा, चीता, साथ खिलावें । मजीठ और पाठा; सबका समान भाग चूर्ण लेकर कृमि विकारमें--१॥ माशा पलाशपापड़ा एकत्र मिला कर खरल करें। (ढाक के बोज) का चूर्ण और ३ माशे गुड़ एकत्र यह चूर्ण क्षय की खांसीको नष्ट करता है । मिलाकर उसके साथ खिलावें। ( मात्रा--१ माशा ।) For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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