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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः बिजौ रे नीबूकी केसर, सेंधा नमक और | ( सेंधा नमक, कांच लवण-कचलोना–सामुद्र काली मिर्च के चूर्णको मुखमें रखनेसे वातकफज लवण, बिड लवण तथा संचल नमक) समान भाग मुखरोग, मुखशोष, मुखकी जडता और अरुचि | लेकर चूर्ण बनावें। नष्ट होती है। इसे मन्दोष्ण जलके साथ सेवन करनेसे बल, (५१२७) मातुलङ्गमूलादियोगः वर्ण और अग्निकी वृद्धि होती है। ( ग. नि. । वन्ध्या . ५) (मात्रा-१॥ से ३ माशे तक । ) मातुलुङ्गशिफां नारी ऋत्वन्ते पयसा पिबेत् । | (५१३०) मानकमूलादियोगः नागकेसरपूरास्थिचूणे वा गर्भदं परम् ॥ (यो. र. । विद्रधिचि.) बिजौ रे नीबूकी जड़का या नागकेसर और शमयति मानकमूलं क्षौद्रयुतं तण्डुलाम्भसा बिजौरे के बीजोंका चूर्ण स्त्रीको मासिक धर्म पीतम् । होनेके पश्चात् दूधके साथ पिलानेसे वह गर्भ अन्तभूतं विद्रधिमुद्धतमाश्वेव मनुजस्य । धारण कर लेती है। ___ मानकन्दके चूर्णको शहदमें मिलाकर चाव(५१२८) मातुलुङ्गादिचूर्णम् (१) । लोंके पानीके साथ पीनेसे कष्टसाध्य अन्तर्विद्रधि ( यो. र.; वृ. मा. । स्त्रीरोगा.: वृ. नि. र.। स्त्री.. भी शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। ___व. से. । स्त्रीरो.) ( मात्रा-१ तोला ) मातुलुङ्गस्य मूलं तु मधुकैः संयुतं तथा । मानसोल्लासचूर्णम् घृतेन सहितं पीत्वा सुखं नारी प्रसूयते ॥ (रसप्रकरणमें देखिये ।) बिजौ रेकी जड़ और मुलैठी समान भाग लेकर मार्कण्डेयचूर्णम् चूर्ण बनावें। (भै. र. । ग्रहण्य.) इसे घृतके साथ पिलानेसे स्त्रीको सुखपूर्वक रस प्रकरणमें देखिये। प्रसव हो जाता है। मार्कवादिचूर्णम् (५१२९) मातुलगादिचूर्णम् (२) (वृ. नि. र. । क्षय.) (वा. भ.। चि. अ. १० ग्रहण्य.) रस प्रकरणमें देखिये। मातुलुङ्गशठीरास्नाकटुत्रयहरीतकी। (५१३१) मालतीयोगः स्वर्जिकायावशूकाख्यौ क्षारौ पञ्चपटूनि च ॥ (व. से. । स्त्रीरो.) सुखाम्बुपीतं तच्चूर्ण बलवर्णाग्निवर्द्धनम् ॥ मृतायाः कुम्भमुदरं पीतं तक्रेण मालतीमूलम् । बिजौ रेकी जड़, कचूर, रास्ना, सोंठ, मिर्च, घृतमधुलीढा सहसा करोति धात्री शमं निशा पीपल, हर, सज्जीखार, जवाखार और पांचों नमक | चैव ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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