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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि मालतीकी जड़का चूर्ण तक्रके साथ सेवन | सपियाला कृताश्चूर्ण पृथङ् मध्वाज्यषड्गुणाः ॥ करानेसे अथवा आमले या हल्दीका चूर्ण शहद पादाभ्यामस्पृशन्भूमि लिहन्कोलमितं पुमान् ।
और घीमें मिलाकर चटानेसे प्रसूताका बढ़ा हुवा लभते बलमुत्साहं स्त्रीषु याति कुलिङ्गवत् ॥ पेट घट जाता है।
___ माषपर्णी (बनउडद), माषपर्णीकी जड़, मिश्री, (५१३२) माषचूर्णम् सिंघाड़ा, जौ, कौंचकी जड़, मुलैठी, बिदारीकन्द
(नपुंसकामृता. । त. ३) और तालमखाना तथा चिरौंजी समान भाग लेकर त्रिपलं माषचूर्ण तु तत्समा श्वेतशर्करा ।। चूर्ण बनावें। आलोडय मधुसर्पिभ्यां पलार्द्ध भक्षयेन्नरः॥ इसमें इससे ६ गुना घी और इतना ही बलवीर्यकरं शश्वद्वलीपलितनाशनम् ॥
शहद मिलाकर रात्रिको सोते समय चाटें और (घीमें भुनी हुई छिलके रहित ) उड़दकी |
उसके बाद भूमि पर पांव न रक्खें। दालका चूर्ण और सफेद खांड १५-१५ तोले
___इसे इस प्रकार सेवन करनेसे बल और लेकर एकत्र मिलावें।
उत्साह बढ़ता तथा मनुष्य कुलिङ्गवत् ( बारबार ) इसे २॥ तोलेकी मात्रानुसार शहद और
| स्त्री समागम कर सकता है। घीमें मिलाकर सेवन करनेसे बलवीर्यकी वृद्धि और (मात्रा-१ तोला ।) बलीपलितका नाश होता है।
(५१३५) माषादिचूर्णम् (१) (५१३३) माषचूर्णयोगः
(वृ. यो. त.। त. १४७) (ग. नि. । वाजीकरणा.)
माषपिपलिशालीनां यवगोधूमयोस्तथा । प्रसूति माषचूर्णस्य धात्रीस्वरसभावितम् । शर्करापिप्पलीयुक्तं चूर्णं तदृष्यमिष्यते ॥ घृतक्षौद्रयुतं लीढ़ा प्रमदा दश गच्छति ॥ । उड़द, पीपल और शाली चावल समान भाग
१० तोले उड़दके चूर्णको आमलेके स्वरसकी लेकर चूर्ण बनावें अथवा जौ, गेहूं, खांड और कई भावना देकर सुखा लें।
पीपल बराबर बराबर लेकर चूर्ण बनावें।। इसे घी और शहदमें मिलाकर चाटनेसे
यह दोनों चूर्ण कामशक्तिकी वृद्धि करते हैं। अत्यन्त कामवृद्धि होती है।
(मात्रा-१ से २ तोले तक। अनुपान-घी (व्यवहारिक मात्रा-१ से २ तोले तक ।) और शहद । ) (५१३४) माषपादिचूर्णम्
(५१३६) माषादिचूर्णम् (२) ( ग. नि. । वाजीकरणतन्त्र.)
(यो. र.; वं. से.; भा. प्र. । सोमरो.) समूलिका माषपर्णी सिता शृङ्गाटकं यवाः॥ माषचूर्ण समधुकं विदारीमधुशर्कराम् । स्वगुप्तामूलयष्टयाहविदारीक्षुरकाः समाः। पयसा पाययेत्प्रातः सोमधारणमुत्तमम् ॥
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