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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि - तिन्तडीक, चीता, दालचीनी और जीरा २-२ इसके सेवनसे गूंगा व्यक्ति अच्छी तरह भाग; सोंठ, इलायची, बेर, अम्लबेत, नागरमोथा, । बोलने लगता है। धनिया और अजमोद ३-३ भाग एवं अनारदाना यह चूर्ण बुद्धिकी मन्दता में बहुत ही उपसबसे चौथाई ( ९॥ भाग ) तथा खांड सबसे योगी है। आधी (२३॥ भाग) लेकर यथाविधि चूर्ण बनावें। (व्यवहारिक मात्रा-२-३ माशे । ) यह चूर्ण कण्ठरोग, मुखरोग, उदररोग, हृद महासुदर्शन चूर्णम् यविकार, गुल्म, आध्मान, विषूचिका, अर्श, श्वास, " सुदर्शन चूर्णम् (महा)' देखिये ।। छर्दि, कृमि, खांसी, अरुचि, अतिसार और मूढ माक्षिकादि चूर्णम् वात को नष्ट तथा जठराग्नि को दीत करता है। (भै. र.; आ. वे. वि. । प्रमेहा.) (मात्रा-६ माशे तक । अनुपान-शहद) रस प्रकरणमें देखिये। (५१२४) महासरस्वतीचूर्णम् (५१२५) मागध्याद्यं चूर्णम् (र. र. स. । अ. २४) ( ग. नि. । हिकावासा. ११) अश्वगन्धाजमोदा च वचा कुष्ठं कटुत्रयम् । मागधिका त्रिफलाकृतचूर्ण शतपुष्पं ब्रह्मबीजं सैन्धवं च समं समम् ॥ ___ यो मधुना सह भोजनकाले । एतदद्ध वचाद्धं च चूर्णितं मधुसर्पिषा। खादति तस्य विनश्यति हिक्का भक्षयेत्कर्षमात्रं तु जीर्णान्ते क्षीरभोजनः ॥ श्वासकफज्वरपीनसपीडा॥ सहस्रग्रन्थधारी स्यान्मूको वा वाक्पतिर्भवेत् ।। पीपल, हर्र, बहेड़ा और आमला समानभाग महासरस्वतीचूर्ण बुद्धिजाड्ये परं हितम् ॥ | लेकर चूर्ण बनावें । असगन्ध, अजमोद, बच, कूठ, सोंठ, मिर्च इसे शहदमें मिलाकर भोजनके समय चाटपीपल, सौंफ, ढाकके बीज (पलासपापड़ा) और नेसे हिचकी, श्वास, कफ, वर और पीनसका सेंधा नमक समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और नाश हो जाता है। फिर उसमें उसके बराबर बचका चूर्ण मिला. ( मात्रा-३-४ माशे।) कर रक्खें। (५१२६) मातुलुङ्गकेसरादियोगः ___ इसमें से नित्य प्रति १। तोला चूर्ण शहद (व. से.; वृ. मा. । ज्वरा.) और घीमें मिलाकर सेवन करने और औषध मातुलङ्गफलकेसरो धृतः सिन्धुजन्ममरिपचने पर दुग्धाहार करनेसे स्मरणशक्ति इतनी प्रबल चान्वितो मुखे । हो जाती है कि हजारों ग्रन्थ कण्ठस्थ किये जा | हन्ति वातकफरोगमास्यगं शोषमाशु सकते हैं। जडतामरोचकम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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