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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम्] चतुर्थों भागः ग्रहणी विकार, वन्ध्य-व, उदावर्त, मूत्रकृच्छ्र, वात- रोग, २० प्रकारके कफज रोग, ११ प्रकारके गलकुण्डलिका और अपस्मार आदि रोग नष्ट होते हैं। रोग, ज्वर, शूल, अर्श, भगन्दर, शोष, स्वरभंग, ( व्यवहारिक मात्रा-१ से ३ माशे तक।) | ऊरुस्तम्भ और हनुग्रहादि रोगोंको नष्ट करता है। (५१२१) महातालीशादिचूर्ण (मात्रा-९ माशे तक । साधारण अनुपान-शहद) (व. से. । राजयक्ष्मा.) (५१२२) महानिम्बबीजयोगः तालीशं चित्रकं व्योपं दाडिम तिन्तिडीयकम् । (वृ. नि. र. । अर्शी.) एतेषां पलिकान् भागान् दीप्यको गजपिप्पली। महानिम्बस्य बीजानि षडष्टदशसङ्घयया । यवानी शतभेद्यश्च कृमिघ्नं ग्रन्थिकं तथा। चूणितं सितया सार्द्ध पिबेद् रक्तार्शसां हितम्।। चव्यश्च केसरश्चैव हपुषाचाज्यशान्यकम् ॥ बकायनके ६-८ या १० बीजोंके चूर्णको जातीफलं लवङ्गश्च त्रिसुगन्धं कणा शुभा। समानभाग खांडमें मिलाकर सेवन करनेसे रक्तार्श एतेषां कर्षमेकन्तु द्विगुणा शर्करा भवेत् ॥ का नाश होता है । पीनसं राजयक्ष्माणं हृद्रोगं वातपैत्तिकम् ।। (यह एक मात्रा है।) मूत्रकृच्छान्नेत्ररोगान् पाण्डुरोगं हलीमकम् ॥ (५१२३) महाषाडवं चूर्णम् अशीतिं वातजान् रोगांश्चत्वारिंशच्च पैत्तिकान् । (ग. नि. । चूर्णा.; वं. से.। अरोचका.; विंशति श्लेष्मिकांश्चैव ह्येकादशगलग्रहान् ।। शा. ध. । ख. २ अ. ६) ज्वराञ्छूलानि चाीसि भगन्दरांश्च शोषकान्। तालीसोषणचव्यनागलवणैस्तुल्यांशकैबिस्ततः वैस्वर्यहननश्चैव ऊरुस्तम्भं हनुग्रहम् ॥ कृष्णाग्रन्थिकतिन्तिडीकहुतभुक्त्वग्जीरकाख्यैमहातालीशमित्येतत् सर्वान् व्याधीन व्यपोहति।। युतः। ___ तालीस पत्र, चीता, सोंठ, मिर्च, पीपल, अना- विश्वैलोबदराम्लवेतसघनैर्धान्याजमोदायुतरदाना और तिन्तडीक ५-५ तोले तथा अजमोद, स्यशैडिमबीजपादसहितः श्रेष्ठः सिताधीशकः गजपीपल, अजवायन, अमलवेत, बायबिडंग, पीप- कण्ठास्योदरहृद्विकारशमनः कायाग्निसन्दीपनो लामूल, चव, नागकेसर, हाऊबेर, जीरा, धनिया, गुल्माध्मानविचिकागुदरुनाश्वासकृमिच्छजायफल, लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपात, दिहा। पीपल और बंसलोचन ११-१। तोला एवं खांड कासारुच्यतिसारमूढमरुतां हृद्रोगिणां कीर्तितसबसे दो गुनी ( ११५ तोले ) लेकर चूर्ण बनावें। इचूर्णाऽयंभिषजामतीव दयितः ख्यातो महायह चूर्ण पीनस, राजयक्ष्मा, वातपित्तज पाडवः ॥ हृद्रोग, मूत्रकृच्छ्, नेत्ररोग, पाण्डुरोग, हलीमक, तालीसपत्र, कालीमिर्च, चव, नागकेसर और ८० प्रकारके वातज रोग, ४० प्रकारके पित्तज सेंधा नमक १-१ भाग तथा पीपल, पीपलामूल, For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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