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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ३७१ (५९९१) रसोनादिलेपः | खदिरं पलमानं च कङ्कुठं च पलार्द्धकम् । (वै. म. र. । पटल ९) क्षिप्त्वा सम्यग्विनिर्मथ्य स्थाप्यो मलहरः परः॥ केवलानिलसमुत्थे शूले महति प्रलेपयेन्मतिमान् शोधनो रोपणो सर्वत्रणानां नास्त्यतः परम् ।। तुङ्गद्रुमतरुणजलै रसोनकल्कं वयो बलं वीक्ष्य। सरसोंके तेलमें बराबर पानी मिला कर दोकेवल वात जन्य प्रवृद्ध शूलमें रोगीकी आयु नांको भली भांति हाथसे फेटें और फिर उसमें और बलादिका विचार करके ल्हसनको नारियलके | १२॥ तोले रालका चूर्ण, ५ तोले कथा ताजे जलमें पीस कर लेप करना चाहिये । और २॥ तोले मुरदाशंखका चूर्ण, मिला कर (५९९२) राजिकादिलेपः (१) । खरल करें। यह मल्हम गोंको शुद्ध करके भरनेके लिये (वृ. नि. र. । त्वग्दोषा. ; यो. र. । कुष्ठा.) | अत्यन्त गुणकारी है। राजिकागुडयुक्तेन सैन्धवेन प्रलेपितम् ।। (तैल सबके बराबर लेना चाहिये । ) विजलं चर्मणा बद्धं नाशं चर्मदलं व्रजेत् ॥ राई, गुड़ और सेंधा नमकका चूर्ण समान (५९९५) रालादिलेपः (१) भाग लेकर सबको पानी मिलाए बिना ही एकत्र ( वृ. नि. र. । मुख रोगा.) पीस लें। रालं मधुच्छिष्टं गुडेन पका इसे लगा कर चमड़ेसे बांध देना चाहिये । तैलं घृतं वा विनिहन्ति लेपात् । त्वक्तोदपारुष्य रुजोऽधरस्य इस प्रयोगसे चर्मदल नष्ट हो जाता है । पूयास्त्र संघावमपि प्रसह्य ॥ (५९९३) राजिकादिलेपः (२) राल, मोम, और गुडको तेल या घीमें पका( यो. र. । शूला.) कर मल्हम बनावें। राजिका शिकल्कं च गोतक्रेण च पेषितम् । इसे लगानेसे होठोंकी तोद, परुषता ( खरतेन लेपेन हन्त्याशु शूलं वातसमुद्भवम् ॥ दरापन ), पीड़ा, और पीप या रक्तस्राव अवश्य राई और सहजनेकी छालको गायके तक्रके | नष्ट हो जाता है । साथ पीस कर लेप करनेसे वातज शूल नष्ट (तीनों ओषधियां १-१ तोला । घी या होता है। तेल २४ तोले ।) (५९९४) रालादिमलहरः । (५९९६) रालादिलेपः (२) (वै. र. । व्रणशोथा.) ( र. का. धे. । अ. ४०) कटुतैलसमं नीरं पाणिभ्यां मर्दयेदृढम् । रालालाक्षाचक्रमर्दमूलकोद्भवबीजतः । पञ्चशुक्तिमितं तस्मिन्रालचूर्ण च निःक्षिपेत् ॥ षष्टितण्डुलकं तपिष्टं दद्रुहर परः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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