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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[रकारादि के बीज समान भाग लेकर प्रथम पारे गंधककी (५९८८) रसादिलेपः (४) कजली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका ।
| ( यो. र. । क्रिमि रोगा. ; यो. त. । त. २४.) चूर्ण मिला कर सबको आकके दूधमें घोटें।।
रसेन्द्रेण समायुक्तो रसो धत्तरपत्रजः। इसका लेप करनेसे विशेषतः चूहेका विष
ताम्बूलपत्रजो वाऽपि लेपनाथूकनाशनः ॥ और साधारणतः अन्य विष भी नष्ट होते हैं।
पारदको धतूरेके पत्तोंके रस में घोट कर लेप (५९८६) रसादिलेपः (२)
करनेसे यूका (जू) नष्ट होती हैं। (वृ. नि. र. । शूला.)
___ इसी प्रकार पारदको पानके रसमें घोट कर रसं गन्धं विषं म्लेच्छं मणिमन्थं च टङ्कणम् ।
म लेप करनेसे भी यूका नष्ट हो जाती हैं । सौराष्ट्र मरिचं नाग हरितालं मनःशिलाम ॥ जेपाल कौशिक तुत्थं नवसारं पृथक समम् ।
(५९८९) रसादिलेपः (५) एतत्सर्वं क्षिपेत्खल्वे आरनालेन पेपयेत् ।। (वृ. नि. र. । त्वग्दोषा.) उदरे लेपनं कुर्याच्छीघ्रतः सर्वशूलजित् ॥ रसोषणं सैन्धवं च विडङ्गञ्चामृतारसः। ___ पारा, गंधक, बछनाग, हिंगुल, सेंधानमक, | कानिकेन विमर्याथ लेपः सिध्मविनाशनः॥ सुहागा, कुन्दरु, काली मिर्च, सीसा, हरताल,
पारद तथा काली मिर्च, सेंधा नमक और मनसिल, जमालगोटा, गूगल, नीलाथोथा और बायबिडंगका चूर्ण समान भाग लेकर सबको एकत्र नौसादर समान भाग लेकर प्रथम पारे गंधकको मिलाकर घोटें और फिर उसे गिलोयके रसकी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां | मिला कर खरल में डालकर कांजीके साथ घोटले । इसे काजीमें बोट कर लेप करनेसे सिध्म पेट पर इसका लेप करनेसे समस्त शूल नष्ट नष्ट होता है।
(५९९०) रसादिलेपः (६) (५९८७) रसादिलेपः (३) (यू. नि. र. । त्वग्दोषा.)
(वृ. नि. र. । त्वग्दोषा.) रसगन्धकहेमं च साभ्रक कटुतैलतः। रसगन्धकयोः पिष्टि कटुतैलेन भृङ्गजैः । मर्दितं मर्दनात्तस्य कुष्ठजातं विनश्यति ॥ | | द्रवैः सम्म तल्ले पात्सर्वं कुष्ठं विनश्यति ॥
पारद, गन्धक, स्वर्णपत्र और अभ्रक समान समान भाग पारद और गन्धककी कमली भाग लेकर सबको एकत्र घोटकर कजली बनावें। बनाकर उसे भंगरेके रसमें घोटें।
इसे सरसेकेि तेल में घोट कर लेप करनेसे इसे सरसोंके तेलमें मिला कर लेप करनेसे कुष्ट नष्ट होता है।
| समस्त प्रकारके कुष्ठ नष्ट होते हैं।
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