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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ३६९ हल्दी और भंगरेकी जड़ समान भाग ले कर रसौत, हर्र, देवदारु, गेरु और सेंधानमकका सबको एकत्र मिला कर शीतल जलके साथ | चूर्ण समान भाग ले कर सबको एकत्र मिलाकर पीस लें। | पानीके साथ पीस लें। इसका लेप करनेसे वीसर्प और वराहदंष्टा नेत्रोंके बाहर इसका लेप करनेसे समस्त नामक रोग नष्ट होता है। नेत्ररोग नष्ट होते हैं। (५९८०) रसाञ्जनादिकल्कः (५९८३) रसाञ्जनादिलेपः (३) (वृ. नि. र. । भगन्द. ; यो. र.; __ (यो. र. ; वृ. नि. २. ; व. से. । उपदंशा.) भै. र. । भगन्द. ; ग. नि. । भगन्द. ; वृ. रसाधनं शिरीषेण पथ्यया वा समन्वितम् । __ मा. । भगन्द.) सक्षौद्रं लेपनं योज्यं सर्वानङ्गगदापहम् ॥ रसाधनं हरिद्रे द्वे मञ्जिष्ठा निम्बपल्लवाः । रसौत और सिरसकी छाल, अथवा रसौत त्रित्तेजोवती दन्ती कल्को नाडीव्रणापहः ॥ | और हर्रका चूर्ण समान भाग ले कर सबको शहरसौत, हल्दी, दारुहल्दी, मजीठ, नीमके । पत्ते, निसोत, मालकंगनी और दन्तीमूल समान भाग दमें मिलाकर लेप बनावें । ले कर सबको एकत्र मिला कर पानीके साथ इसे लगानेसे उपदंशके व्रण नष्ट होते हैं। अत्यन्त महीन पीस कर कल्क बनावें । (५९८४) रसाञ्जनादिलेपः (४) इसका लेप करनेसे नाडीव्रण ( नासूर ) नष्ट (व. से. । नेत्र रोगो.) होता है। रसाअनेन वा लेपः पथ्या विश्वदलैरपि । (५९८१) रसाञ्जनादिलेपः (१) वचाहरिद्राविश्वाभिस्तथानागरगैरिकैः ।। (वृ. यो. त. । त. ११९ शूकरोगा.) कफाभिष्यन्दमें नेत्रों के बाहर रसौतका यो रसाञ्जनं साद्वयमेकमेव हर्र और अदरकके पत्तोंका अथवा वच, हल्दी प्रलेपमात्रेण नयेत्पशान्तिम् । और सेठका किंवा, सोंठ और गेरुका लेप सपूतिपूयत्रणशोथकण्डू करना चाहिये। शूलान्वितं सर्वमनङ्गरोगम् ॥ रसौतका लेप करनेसे दुर्गन्ध और पीप तथा (१९८५) रसादिलेपः (१) खुजली युक्त उपदंशके व्रण नष्ट होते हैं। ___ (र. चं. । विषा. ; बृ. नि. र. । विषा. ) (५९८२) रसाञ्जनादिलेपः (२) रसं गन्धं निशाबन्धुं गृहधूमं शिरीषजम् । (ग. नि. । नेत्र रोगो. ३.) । बीजं दिनकरक्षीरैमर्दयित्वा विलेपनम् ।। रसाअनाभयादारुगैरिकं सैन्धवान्वितम् ।। विशेषान्मूषकविषं हन्यादन्यान्विपोद्भवान् । जलपिष्टैबहिर्लेपः सर्वनेत्रामयापहः ॥ पारा, गंधक, कपूर, घरका धुंवां और सिरस ४७ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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