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चूर्णप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
आसबके साथ सेवन करनेसे प्लीहा (तिल्ली ) को (संचल), बिड लवण, कांच लवण और समुद्र लवण आराम होता है।
समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । ( मात्रा-१-१॥ माशा ।)
इसके सेवनसे समस्त प्रकारके गुल्म नष्ट (५७४६) यमान्यादिचूर्णम्
होते हैं। ( भै. र. । क्षुद्र रोगा. ; वृ. नि. र. । शूला. अनुपान-धीमें मिलाकर सेवन करें । भै. र. । गुल्म. ; ग. नि. । शूला. ; ग. नि. ।
( मात्रा-२ माशे ।) गुल्म. ; वृ. मा. । गुल्म.)
(५७४९) यवक्षारयोगः (३) यमानीहिसिन्धृत्यक्षारसौवर्चलाभयाः। मुरामण्डेन पातव्या वातशूलनिषूदनाः ॥ (व. से. । मूत्रकृच्छ्र. ; वृ. मा. ; ग. नि. ; अजवायन, भुनी हुई हींग, सेंधा नमक, जवा.
वृ. नि. र.) खार, काला नमक (संचल) और हर्र समान भाग | सितातुल्यो यवक्षारः सर्वकृच्छपणाशनः । लेकर चूर्ण बनावें ।
द्राक्षासितोपलाकल्कं कृच्छन्नं मस्तुना युतम् ॥ इसे सुरामण्ड (मद्यके ऊपर वाले स्वच्छ भाग) ( वृ. मा. में श्लोकका उत्तरार्द्ध इस प्रकार हैके साथ सेवन करनेसे वातज शूल ( और गुल्म ) नष्ट होता है।
"निदिग्धिका रसो वाऽथ सक्षौद्रः कृच्छ्नाशनः" मात्रा-१ माशा।
(१) जवाखार और मिसरी समान भाग ले (५७४७) यवक्षारयोगः (१) कर चूर्ण बनावें। (व. से. । बाल. ; यो. र. । मुख पाक.)
| इसके सेवनसे समस्त प्रकारके मूत्रकृच्छ नष्ट तालुपाके यवक्षारं मधुना प्रतिसारणम् ।
| होते हैं। जवाखारको शहदमें मिलाकर मलनेसे तालु- (मात्रा-१॥ माशा । अनुपान-मस्तु या पाक नष्ट होता है।
उष्ण जल) (५७४८) यवक्षारयोगः (२)
(२) मुनक्का और मिसरीको पत्थर पर पीस (व. से. । गुल्म, उदर.) कर मस्तुके साथ सेवन करनेसे मूत्रकृच्छू नष्ट क्षारद्वयानलव्योषनीलीलवणपञ्चकम् । होता है। चूर्णितं सर्पिषा पेयं सर्वगुल्मोदरापहम् ॥ (३) कटेलीके रसमें (या इलायचीके काथमें)
जवाखार, सज्जीखार, चीता, सोंठ, मिर्च, | शहद मिला कर सेवन करनेसे मूत्रकृच्छ्र नष्ट पीपल, नीलकी जड़, सेंधा नमक, काला नमक ' होता है ।
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