________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८६
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[यकारादि
मूत्राघातं मूत्रकृच्छं सशूलं
(१) आमलेके रसमें मिश्री मिलाकर पीनेसे __ हन्यात्क्षिप्रं शर्करामश्मरीं च ॥ योनिदाह नष्ट होती है । ग्रीष्म कालमें उखाड़ी हुई जूहीकी जड़को
(२) सूर्यकान्त (सूरजमुखी ) की जड़को
चावलोंके पानीमें पीसकर सेवन करनेसे भी योनिबकरीके दूधमें पकाकर पीनेसे मूत्राघात, शूल युक्त मूत्रकृच्छ्र और शर्करा तथा अश्मरीका शीघ्र ही
दाह नष्ट हो जाती है। नाश हो जाता है।
(५७४३) योनिसङ्कोचकक्वाथः
(र. रा. सु. । स्त्री.) ( जूहीकी जड़ ५ तोले, दूध ४० तोले, | पानी १६० तोले । एकत्र मिलाकर पकावें ।।
| प्रक्षालयेद्भगं नित्यं पथ्यामलकवल्कलैः । जब पानी जल जाए तो दूधको छान लें।)
वृद्धापि कामिनी कापि बालावत्कुरुते रतिम् ॥
हर्र और आमलेके क्वाथसे योनिको धोनेसे योगराजक्वाथः
वृद्धा स्त्रीकी योनि भी बालिकाके समान हो ( भा. प्र. । सन्निपात.)
जाती है। प्र. सं. ३३६७ “ नागरादि काथः (१३)" | (५७४४) योनिसङ्कोचकयोगः देखिये।
(बृ. नि. र. । स्त्री रोग ) (५७४२) योनिशूलहरो योगः
| कपिकच्छूभवं मूलं क्वाथयेद्विधिना भिषक् ।
योनिः सङ्कीर्णतां याति क्वाथेनानेन धावनात्॥ ( वृ. नि. र. । स्त्रीरो.)
कौंचकी जड़को आठ गुने पानीमें पकावें धात्रीरसं सितायुक्तं योनिदाहे पिबेन्सदा। और जब चौथा भाग शेष रहे तो छान लें। सूर्यक्रान्ताभवं मूलं पिबेद्वा तण्डुलाम्बुना ॥ । इस काथसे धोनेसे योनि सङ्कीर्ण हो जाती है।
इति यकारादिकषायप्रकरणम् -
- अथ यकारादिचूर्णप्रकरणम् (५७४५) यमानिकादिचूर्णम् प्लीहानमेतद्विनिहन्ति चूर्ण( यो. र. ; व. से. ; ग. नि.; भै. र.। प्लीह.;
मुष्णाम्बुना मस्तुसुरासवैर्वा । वृ. मा. । उदर. ; वृ. नि. र. ; धन्व. । उदर.; वृ. यो. त. । त. १०५)
अजवायन, चीतामूल, जवाखार, वच, दन्तीयमानिकाचित्रकयावशूकं
| मूल और पीपल समान भाग ले कर चूर्ण बनायें । षड्ग्रन्थिदन्तीमगधोद्भवानाम् । इसे उष्ण जल या मस्तु अथवा मद्य या
For Private And Personal Use Only