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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः सबको कांटे वाली चौलाईके रसमें घोट कर, शरा- __(५६६७) मेघनादरसः (३) वसम्पुट में बन्द करके भूधरपुट में पकावें । इसी (र. र. स. । अ. १२) प्रकार चौलाईके रसमें घोट घोट कर ६ पुट दें। मुतांशको साररविः समांशइसे पानमें रखकर खिलानेसे विषम ज्वर, गन्धो विपक्वः स्वकषायपिष्टः। तरुण ज्वर, जीर्ण ज्वर, तृष्णा, दाह और ज्वराति- रसः क्रमान्माषमितोऽनिलादिसार नष्ट होता है। ___ ज्वरेषु नाम्ना किल मेघनादः ॥ मात्रा-१ रत्ती। शुद्ध पारद, फौलाद भस्म और ताम्र भस्म अनुपान-सोंठ, अतीस, नागरमोथा, चिरा समान भाग तथा गन्धक सबके बराबर लेकर प्रथम यता, गिलोय और इन्द्र जौ का कोथ बनाकर रस पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें खानेके पश्चात् पियें। अन्य दोनों भस्में मिलाकर खरल करें । तदनन्तर पथ्य-दूध भात । इसे जिस प्रकारके ज्वरमें प्रयुक्त करना हो उसको (५६६६) मेघनादरसः (२) नष्ट करने वाली ओषधियोंके काथमें घोटकर (रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. । प्रमेह. ; रसे. शराव-सम्पुटमें बन्द करके भूधर पुटमें पकावें । चि. म. । अ. ९.) यह रस समस्त ज्वरोको नष्ट करता है। भस्मसूतं समं कान्तमभ्रकन्तु शिलाजतु । मात्रा----१ माशा । ( व्यवहारिक मात्रा शुद्धताप्यं शिलान्योषत्रिफलाकोठजीरकम् ॥ २ रत्ती ।) । कार्पासबीज रजनीचूर्ण भाव्यञ्च वह्निना। (५६६८) मेघनादरसः (४) विंशतिधा विशोष्याथ लिह्याच्च मधुना सह ॥ (र. का. धे. । ज्वरा. ) माषमात्र हरेन्मेहं मेघनादरसो महान् ॥ अभ्रक मूतकं तालं त्रिभिस्तुल्यं तु गन्धकम् । पारद भस्म (या रस सिन्दूर ), कान्त लोह रसेन मेघनादस्य पिष्ट्वा रुद्धवा पुटे पचेत् ॥ भस्म, अभ्रक भस्म, शुद्ध शिलाजीत, स्वर्णमाक्षिक सञ्चूयं पर्णखण्डेन दातव्यो विषमापहः । भस्म, शुद्ध मनसिल, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, अत्र मात्रा द्विगुञा स्यात्पथ्यं दुग्धोदनं हितम्।। बहेड़ा, आमला, ढेरा, जीरा, कपास बीज (बिनौ- पञ्चामृतं पलं चैकमनुपानं प्रयोजयेत् ॥ लेकी मज्जा ) और हल्दीका चूर्ण समान भाग ले ___अभ्रक भस्म, शुद्ध पारद और शुद्ध हरताल कर सबको चीतामलके काथकी २० भावना दे कर १-१ भाग तथा शुद्ध गन्धक ३ भाग लेकर सुखाकर रक्खें । प्रथम पारे गन्धककी कजली बना और फिर इसे शहदके साथ सेवन करनेसे प्रमेह नष्ट | उसमें अन्य दोनों औषधे मिलाकर सबको कांटे होता है। वाली चौलाईके रसमें घोटकर शराव-सम्पुटमें मात्रा-१ माशा। बन्द करके भूधर पुटमें पकावें। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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