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कांजी में २-२ पहर घोटकर गोला बनावें और उसे सुखाकर शरोवसम्पुट में बन्द करके ४ पहर लवण यन्त्र में पकावें और फिर यन्त्रके स्वांग शीतल होने पर उसमें से औषधको निकालकर सुरक्षित रक्खे |
- भैषज्य रत्नाकरः भारत
इसे काली मिर्च के चूर्ण और घीके साथ अथवा पीपलके चूर्ण और शहद के साथ सेवन करने से राजयक्ष्माका नाश होता है ।
मात्रा - ४ रत्ती ।
(५६३७) मृगाङ्करस: (५) (महा) ( र. चं. ; र. सा. सं. ; भै. राजयक्ष्मा. )
र. र. रा. सु. ।
freeeen सौवर्ण द्विगुणं भस्मसूतकम् 1 द्विगुणं भस्म मुक्तोत्थं शुकपुच्छं चतुर्गुणम् ॥ मृतताप्यं च पश्चांशं तारभस्म चतुर्गुणम् । सप्तभागं प्रवालं च रसतुल्यं च टङ्कणम् ॥ सर्वमेकत्र सम्म त्रिदिनं लुङ्गवारिणा । ततश्च गोलकं कृत्वा शोषयित्वा खरातपे || लवणैः पात्रमापूर्य तन्मध्ये गोलकं क्षिपेत् । तन्मुखं तु मृदा रुध्वा पचेद्यामचतुष्टयम् ॥ आकृष्य चूर्णयेत् शुद्धं चतुःषष्टीविभागतः । वज्रं वा तदभावे तु वैक्रान्तं षोडशांशिकम् ॥ महामृगाङ्कः खलु एष सिद्धः श्रीनन्दिनाथप्रकटीकृतोऽयम् । वल्लास्य सेव्यो मरिचाज्ययुक्तः सेव्योऽथ वा पिप्पलिकासमेतः ॥ तत्रोपचाराः कर्तव्याः सर्वे क्षयगदोदिताः । बल्यं व्रुष्यं च भोक्तव्यं त्यजेत्सुतविरोधि यत्
[मकारादि
यक्ष्माणं बहुरूपिणं ज्वरगर्द गुल्मं तथा विद्रधिम् । मन्दात्रं स्वरभेदकासम - रुचिं वान्ति च मूर्च्छा भ्रमिम् ॥ अष्टावेव महागदान्ग्रह
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गदान पाण्ड्वापयं कामलान् । पित्तोत्थांश्च समग्रकान् बहुविधानन्यांस्तथा नाशयेत् ॥
निरुत्थ स्वर्ण भस्म १ भाग, पारद भस्म २
भाग, मुक्ता भस्म २ भाग, शुद्ध गन्धक ४ भाग, स्वर्ण माक्षिक भस्म ५ भाग, चांदी भस्म ४ भाग, प्रवाल (मूंगा) भस्म सोत भाग और सुहागा २ भाग लेकर सबको एकत्र पीसकर ३ दिन बिजौरे नींबू के रसमें घोटें और उसका गोला बनाकर तेज धूप में सुखा लें । तदनन्तर इस गोलेपर कपड़ा
लपेटकर उसपर १ अंगुल मोटा मिट्टीका लेप कर दें और उसे सुखाकर नमक के चूर्णसे भरी हुई हाडी में नमक के बीच में रख दें; तथा हाण्डीके मुख पर शराव ढक कर सन्धिको मिट्ठीसे बन्द करके ४ परकी अग्नि दें। तत्पश्चात् हाण्डीके स्वांग शीतल होनेपर उसमेंसे औषधको निकालकर उसमें उसका ६४ वां भाग हीराभस्म और उसके अभा१६ वां भाग वैकान्त भस्म मिलाकर खरल
कर रक्खे |
मात्रा - ३ रत्ती ।
अनुपान - काली मिर्च का चूर्ण और घी अथवा पीपलका चूर्ण और घी ।
भै. र. व. में हीरक भस्म १ भाग लिखी है ।
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