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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] — चतुर्थो भागः १५५ - - तेन प्रभिद्यते श्लेष्मा प्रभिन्नश्च प्रसिच्यते । मुण्डीके कल्क और काथसे सिद्ध तेलकी शिरोहृदयकण्ठास्यपा_रुक् चोपशाम्यति ॥ नस्य देने और पिलानेसे स्त्रीके शिथिल स्तन दृढ़ ____ सन्निपात रोगीको बिजौ रे और अदरकके हो जाते हैं। मन्दोण रसमें त्रिलवण (सेंधा नमक, काला नमक (५४६५) मोहान्धसूर्यनस्यम् और विडलवण) का चूर्ण मिला कर उसकी अथवा अन्य किसी तीक्ष्ण औषधको नस्य देनेसे कफ (र. रा. सु. । सन्निपाता.) ढीला होकर निकल जाता है और शिर पीड़ा, गन्धेशौ लसुनाम्भोभिर्मेर्दयेद्याममात्रकम् । हृदयशूल, कण्ठ तथा मुखका दर्द एवं पाव वेदना तस्योदकेन संयुक्तं नस्यं तत्पतिबोधकृत् ॥ आदि नष्ट हो जाती है। (५४६४) मुण्डीतैलनस्यम् ___ समान भाग पारद और गन्धकको कज्जली (वै. म. र. । पटल १७) बनाकर उसे १ पहर तक ल्हसनके रसमें घोटें। तैलं कषाये मुण्डिन्याः तत्कल्कं साधितं नसि। इसे ल्हसनके रसमें मिलाकर नस्य देनेसे दत्तं पीतं च कुचयोः पतनं विनिवर्तयेत् ॥ । सन्निपातकी मूर्छा नष्ट होती है । इति मकारादिनस्यप्रकरणम् अथ मकारादिरसप्रकरणम् मकरध्वजो रसः (१) (५४६६) मकरध्वजो रसः (२) (र. मं.; भै. र. । वाजीकर.) (र. र. रसा. । उपदेश ६ ) प्र. सं. १९०८ "चन्द्रोदयो रसः" देखिये। वज्रहेमार्कसूताभ्रलोहभस्मक्रमोत्तरम् । भै. र. में गन्धक पारदसे तीन गुना लिखा सर्व कन्याद्रवैमर्थ शाल्मल्याश्च द्रवस्यहम् ॥ है । भैषज्य रत्नावली; धन्व; तथा र. रा. सु. के . तद्रुद्वा काचकुप्यन्तर्वालुकायां व्यहं पचेत । ज्वराधिकारमें कथित “मकरध्वजो रसः" भी नं. तत्कल्कं मुशलीक्वाथैर्वज्रार्कक्षीरसंयुतैः ॥ १९०८ के समान ही है परन्तु उसमें सेवन विधि | दिनैकं मर्दयेत्खल्वे रुवाऽन्तर्भूधरे पुटेत् । में कर्पूर आदि अनुपान--द्रव्योंका वर्णन नहीं है। यामाद्धृत्य सञ्चूये सिताकृष्णात्रिजातकैः॥ तथा कजलीको केवल घृत कुमारी-रसकी भावना समैः समं विमिश्याथ मापैकं भक्षयेत्सदा । देनेके लिये लिखा है। | मागधी मुशली यष्टी वानरीबीजकं समम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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