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भारत-भैपज्य-रत्नाकरः
[ मकारादि चूर्ण सिताज्य गोक्षीरैः पलार्ध पाययेदनु। (५४६७) मकरध्वजो रसायनः कामिनीनां सहस्रैकं रममाणो न मुह्यति ॥ (भै. र. । रसायना.; र. रा. सु.। रसायन.; न. सेवनादृढकायः स्याद्रसोऽयं मकरध्वजः ॥
मृता. । त. ५) हीरकी भस्म १ भाग, स्वर्णभस्म २ भाग, | स्वर्णस्य भागौ वङ्गश्च मौक्तिकं कान्तलौहकम् । ताम्रभस्म ३ भाग, पारदभस्म ४ भाग, अभ्रक
जातीकोषफले रूप्यं कांस्यकं रससिन्दूरम् ॥ भस्म ५ भाग और लोहभस्म ६ भाग लेकर सबको |
प्रवालं कस्तूरी चन्द्रमभ्रकञ्चकभागिकम् । ३-३ दिन घृतकुमारी और सेंभलकी मूसलीके
| स्वर्णसिन्दूरतो भागांश्चत्वारः कल्पयेद् बुधः। स्वरस में खरल करके आतशी शीशीमें भरकर यथा
नातः परतरः श्रेष्ठः सर्वरोगनिमूदनः। विधि ३ दिन तक वालुका -यन्त्रमें पकवें।।
सर्वलोकहितार्थाय शिवेन परिकीर्तितः ।। ___तदनन्तर शीशीमें से रसको निकालकर उसे
___स्वर्णभस्म २ भाग तथा बङ्गभस्म, मोतीभस्म, १-१ दिन क्रमशः मूसलीके काथ, थोहरके दूध
कान्तलोह-भस्म, जावित्री और जायफलका चूर्ण, और आकके दूधमें घोटकर भूधरयन्त्र में एक पहर
चांदी भस्म, कांसी भस्म, रससिन्दूर, प्रवाल (मूंगा) की अग्नि दें।
भस्म, कस्तूरी, कपूर और अभ्रक भस्म १-१ भाग तत्पश्चात् उसे निकाल कर उसमें मिश्री,
एवं स्वर्ण सिन्दूर ४ भाग लेकर सबको एकत्र पीपल, दालचीनी, इलायची और तेजपातका खरल करें। चूर्ण (समान भाग मिश्रित उपरोक्त सिद्ध (तैयार) |
इसके समान सर्वरोगनाशक अन्य औषध एसके बराबर) मिलाकर अच्छी तरह खरल करें। नहीं है। __ अनुपान-पीपल, मूसली, मुलैठी और कौंचके
(मात्रा-२ रत्ती) धीजोंका चूर्ण समान भाग लेकर एकत्र मिला
(५४६८) मञ्जिष्ठादिचूर्णम् कर रक्खें।
__ (वृ. नि. र. । अश्मरि.) सेवन विधि-उपरोक्त रसमें से १ माशा | खाकर उपरसे २।। तोले अनुपान-चूर्ण फांक कर
| मञ्जिष्ठा त्रापुष बीजं जीरकः शतपुष्पिका । मिश्री और घृतयुक्त गोदुग्ध पियें।
धात्रीफलं वदरकं। गन्धकं च मनःशिला ॥
एतेषां समभागानां चूर्ण टङ्कमितं नरः । इसके सेवनसे सहस्रों रमणियों के साथ काम
भक्षयेन्मधुना सार्दै पतेत्तस्याश्मरी ध्रुवम् ॥ केलि करनेकी शक्ति प्राप्त होती है तथा दीर्घकाल तक सेवन करने से शरीर दृढ़ होता है।
___ मजीठ, खी रेके बीज, जीरा, सोया, आमला, (व्यवहारिक मात्रा-रस २ रत्ती । अनुपान सूखाबेर (पाठान्तरके अनुसार शुद्ध हिंगुल), शुद्ध चूर्ण.६ माशे।)
१ धात्रीफलञ्च दरदमिति पाठान्तरम् ।
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