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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
काली मिरच, सहजनेके बीज, बायबिडंग । . काली मिर्च, दारुहल्दी, बच, कूठ, बायबिडंग, और बनतुलसी के पत्र समान भाग लेकर चूर्ण सेठ, हल्दी और इन्द्रायणको जड़ समान भाग बनावें।
लेकर बकरेके मूत्रमें पीसकर नस्य देनेसे 'तन्द्रिक इसकी नस्य देनेसे शिरोविरेचन हो जाता। सन्निपात ' नष्ट होता है। है । ( यह योग अपतन्त्रक रोगमें बेहोशी दूर (५४६१) मरिचादिनस्यम् (५) करनेके लिये प्रयुक्त किया जाता है।)
(यो र. । ज्वरा.) (५४५८) मरिचादिनस्यम् (२) मरिचतुरगगन्धा मागधीसिन्धुजातं (भा. प्र.। सन्निपात ; वृ. नि. र.। सन्निपात) लशुनमधूकसारैरुग्रगन्धाकाभ्याम् । अशिशिरजल परिमादितं मरिचकणाजीरसिन्धुजम छगलकजलपिष्टः संयुतः शास्त्रविद्भिः नस्यविधि सेवितं ननु कर्णकरुनाशकृद्गदितम् ॥ सपदि भवति नस्यो मुग्ननेत्रप्रमाथी ।
काली मिरच, पीपल, जीरा और सेंधेके समान काली मिर्च, असगन्ध, पीपल, सेंधा नमक, भाग मिश्रित बारीक चूर्णको उष्ण जलमें पीसकर ल्हसन, महुवेका गोंद, बच और अद्रकके समाननस्य देनेसे ' कर्णक-सन्निपात ' नष्ट होता है। भाग मिश्रित चूर्ण (कल्क) को बकरेके मूत्रमें __ (५४५९) मरिचादिनस्यम् (३)
पीसकर नस्य देनेसे "भुप्रनेत्र सन्निपात" शीघ्रही (वै. म र. । पटल ९) ।
नष्ट हो जाता है। स्तन्यनिघृष्ट मरिचं नसि निहितं नाश्येच्छलम।। (५४६२) महोषधादिनस्यम् गुडमरिचविहितकल्कः कोष्णजलैः पीतं आशु
(. मा. | शिरो.) नाशयति॥ महौषधं सस्वरसं वचापिप्पलिभिः कृतम् । काली मिरचको स्तन्य (स्त्रीके दूध ) में अवपीडं प्रदातव्यं मूर्यावर्तनिषूदनम् ॥ घोटकर उसकी नस्य देने और गुड़में काली मिर- एष एव विधिः कृतस्नः कार्यश्चार्धावभेदके। चका चूर्ण मिलाकर उष्ण जलके साथ पीनेसे शूल | सांठ, बच, और पीपलके चूर्णको अदरकके तुरन्त नष्ट हो जाता है।
रसमें घोटकर, कपड़ेसे निचोड़कर रस निकालें । (५४६०) मरिचादिनस्यम् (४) __ इसकी नस्य लेनेसे सूर्यावर्त और अर्धावभेदक
(वृ. नि. र. । सन्निपात.) ( आधा सीसी )का नाश होता है । मरीचकं च पचंपचा वचा रुक
(५४६३) मातुलुङ्गादिनस्यम् कृमिहरनागरशर्वरीगवाक्ष्यः ।
( वृ. नि. र. सन्निपात.) छगलकजलकान्विता नितान्त | मातुलिङ्गाकरसं कोणं त्रिलवणान्वितम् ।
नसि निहिता ननु तन्द्रिकं जयन्ति ॥ । अन्यद्वा सिद्धविहितं नस्यं तीक्ष्णं प्रयोजयेत् ॥
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