SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नस्यप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः - अथ मकारादिनस्यप्रकरणम् (५४५२) मक्षिकाविट्नस्यम् इसकी नस्य लेनेसे वातपित्तज शिर-शूल (वृ. नि. र. । हिक्का.) और अर्दित नष्ट होता है। स्तन्येन माक्षिकाविष्टा नस्ये वालक्तकाम्बुना। (५४५५) मधूकादिनस्यम् योज्या हिक्काभिभूतेभ्यःस्तन्यं वा चन्दनान्वितम् (च. द. । ज्वर; ग. नि. । ज्वरा. ; व, से. । स्तन्य (स्त्रीके दूध) के साथ मक्खीकी विष्टा ज्वरभा. प्र. । म. खं. २) या सफेद चन्दन घिसकर अथवा लाखके पानीके मकसारसिन्धत्थवचोपणकणाः समाः। साथ मक्खीकी विष्टा घिसकर नस्य देनेसे हिका लक्षणं पिष्टवाम्भसा नस्यं (हिचकी) शान्त होती है। __कुर्यात्संज्ञापबोधनम् ॥ (५४५३) मधुकादिनस्यम् (१) महुवेका सार (पुष्प रस), सेंधानमक, बच, (यो. त. । त. २९; वृ. मा. । हिक्का.) काली मिर्च और पीपल समान भाग लेकर सबको मधुकं मधुसंयुक्तं पिप्पली शर्करान्विता ।। अत्यन्त बारीक पीसें। नागरं गुडसंयुक्तं हिक्कानं नावनत्रयम् ॥ ___ इसे पानीमें मिलाकर नस्य देनेसे बेहोशी दूर ___ मुलैठीके चूर्णको शहदमें मिलाकर या पीपल होती है। के चूर्णको समान भाग खांडमें मिलाकर अथवा (५४५६) मनःशिलादिनस्यम् सेठिके चूर्णको गुड़में मिलाकर नस्य देनेसे हिचकी नष्ट होती है। (ग. नि. । शिरो.) (५४५४) मधुकादिनस्यम् (२) नस्यं मनःशिलारो, पिप्पलीमरिचान्वितम् । | यः करोति हरेदेव तस्याधेशिरसो व्यथाम् ॥ (वै. म. । पटल १६) मनसिल, लोध, पीपल और काली मिरच वातपित्तननितं शिरोरुजं नाशयेन्मधुकल्यसाधितम् । समान भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें । नारिकेलपयसा शृतं त्विदं इसकी नस्य लेनेसे आधासीसी (आधे मस्तक तैलमर्दितहरं च नावनात् ॥ की पीड़ा) नष्ट होती है। मुलैठीका चूण १० तोले, नारयलका दूध ४ (५४५७) मरिचादिनस्यम् (१) सेर और तिलका तैल १ सेर लेकर सबको एकत्र (व. से. । वातव्या. ; वृ. नि. र. । वातव्या. ) मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको | मरिच शिवीजानि विडङ्गश्च फणिन्जकम । छान लें। । एतानि श्लक्ष्णचूर्णानि दद्याच्छीर्षविरेचने ॥ २० For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy