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कषायप्रकरणम्
चतुर्थो भागः
११
(५०१७) मांस्यादिगणः (५०२०) मातुलुङ्गमूलादिपाचनकषायः ( वृ. नि. र. । त्वग्दोषा.)
(ग. नि. । वरा.) मांसीचन्दनशम्पाककरारिष्टसर्षपम् । मूलानां मातुलुङ्गथास्तु पिप्पिलीशृङ्गवेरयोः । यष्टोकुटजदार्वी भिर्हन्ति कण्ड्रमयं गणः॥ अजमोदस्य च काथ: सक्षारः पाचनः कफे ॥ जटामांसी, लाल चन्दन, अमलतास, करञ्जकी
___बिजौरे नीबूकी जड़, पीपल, अदरख (सोंठ) छाल, नीमकी छाल, सरसों, मुलैठी, कुड़ेकी छाल
और अजमोदके काथमें जवाखार मिलाकर पिलावें । और दारुहल्दी समान भाग लेकर क्वाथ
___ यह काथ कफचरपाचक है । बनावें।
(५०२१) मातुलङ्गरसादियोगः (१)
(वृ. मा. । गुल्मा.) इसे सेवन करने से कण्डू (खुजली ) नष्ट
मातुलुङ्गरसो हिङ्गु दाडिमं विडसैन्धवम् । होती है।
सुरामण्डेन पातव्यं वातगुल्मरुजापहम् ॥ (५०१८) मातुलफलयोगः
बिजौरे नीबूके रसमें भुनी हुई हींग, अना(रा, मा. विषरो.) रदाना, बिड नमक और सेंधानमकका चूर्ण मिलाअसनजटाजल पिष्टं
कर चटा और ऊपरसे सुरामण्ड पिलावें । यः खादति मातुलस्य फलमेकम् ।। इस प्रयोगसे वातज गुल्मकी पीड़ा शान्त उन्मत्तसारमेयमभवं
होती है। विषमस्य शममेति ॥
(५०२२) मातुलुङ्गरसादियोगः (२) धतूरे के एक फलको असना वृक्षकी जड़की
| (व. से. । शूलरोगा.; वृ. नि. र. । शूला.) छाल के स्वरस ( या क्वाथ ) में पीस कर पीनेसे
मातुलुङ्गरसः सपिः सहिङ्गुलवणान्वितम् । पागल कुत्ते के काटने का विष नष्ट हो जाता है।
| सुखोष्णं पाययेदेन द्विविवन्धानुलोमनम् ॥
कुक्षिहृत्पार्श्वशूलेषु वेदना चोपशान्य ते ॥ (५०१९) मातुलङ्गबीजयोगः
बिजो रेका रस और घी (२-२ तोले) (रा. मा. अ. ९)
लेकर दोनोंको एकत्र मिलाकर उसमें ज़रा सा मातुलुङ्गस्य बीजानि कुमार्या सह पेषयेत् ।
हींग और सेंधा नमक मिलाकर मन्दोण करके क्षीरेण सह दातव्यं गर्भपामोति न संशयः ॥
| पिलानेसे मलावरोध नष्ट होता, वायु खुलता और बिजौरे नोबूके बीजोंको धीकुमार (ग्वारपाठा)
| 'कोख, हृदय तथा पसलीको पीड़ा शान्त होती है। के रसके साथ पीसकर दूधके साथ पिलानेसे स्त्री
(५०२३) मातुलुङ्गरसादियोगः (३) अवश्य गर्भ धारण कर लेती है ।
(हा. सं. । स्था. ३ अ. ४) ( यह औषध मासिक धर्म होनेके पश्चात् मातुलङ्गरसं ग्राह्यं द्विगुणं तत्र काधिकम् । कई रोज़ सेवन करानी चाहिये ) हिङ्गुसौवर्चलयुतं पानं हन्ति विषूचिकाम् ॥ .
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