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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ मकारादि
बिजौ रेका रस १ भाग (२ तोले ) और बिजौ रे नीबूके (२-३ तोले) रसमें जरासा, काञ्जी २ भाग लेकर दोनोंको एकत्र मिलाकर काला नमक और शहद मिलाकर पीनेसे अथवा उसमें हींग और काला नमक मिलाकर पीनेसे सोंठ, आमला और पीपलके चूर्णको शहदमें मिलाविषूचिका नष्ट होती है।
| कर चाटनेसे हिक्का (हिचकी) नष्ट हो जाती है। (५०२४) मातुलङ्गारसादियोगः (४) (५०२७) मातुलुङ्गादिकल्कः (वृ. मा. । शूला.; यो. र. । शूला;
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ५) वृ. नि. र. । शूला.)
मातुलुङ्गस्य मूलानि रसोनः क्रिमिजित् त्रिवत् । मातुलङ्गरसो वाऽपि शिशुक्वाथस्ततः परः।।
। अजमोदा निम्बपत्रं गोमूत्रेण तु पेपयेत् ।। सक्षारो मधुना पीतः पाचहृद्वस्तिशूलनुत् ॥ पानमेतत प्रशंसन्ति क्रिमिदोपनिवारणम् ।
बिजौ रेके रसमें अथवा सहंजनेकी छालके ज्वरमोक्तानि पथ्यानि क्रिमिदोषे प्रदापयेत् ॥ काथमें जवाखार और शहद मिलाकर पीनेसे
बिजौ रेकी जड़, ल्हसन, बायबिडंग, निसोत, पसली, हृदय और बस्तीका शूल नष्ट हो जाता है। अजमोद और नीमके पत्ते समान भाग ले कर सब (५०२५) मातुलुङ्गरसादियोगः (५) को एकत्र मिला कर गोमूत्रके साथ पीस लें। (हा. सं. । स्था. ३ अ. ७)
इसे ( गौमूत्र या उष्ण जल के साथ ) पीने मातुलुङ्गरसं धात्रीरसं सैन्धवसंयुतम् । | से कृमिरोग नष्ट होता है। सौभाअनकमूलस्य रसं च मरिचान्वितम् ॥
कृमि रोगमें ज्वरके समान पथ्य देना सक्षारमधुनोपेतं श्लेश्मशूलनिवारणम् ।।
| चाहिये। यकृत्क्षयोद्भवं शूलं नाशयत्याश्वसंशयम् ॥
(मात्रा-१ तोले तक। बिजौरे नीबूका रस, आमले का रस और (५०२८) मातुलङ्गादिकाथः (१) सहंजनेकी जड़की छालका रस समान भाग (१-१
(वृ. नि. र. । सन्निपाता.) तोले ) लेकर सबको एकत्र मिलाकर उसमें सेंधा. नमक, काली मिर्च और जवाखार तथा शहद
मातुलुङ्गादि भूनिम्बग्रन्थिकं देवदारु च । मिलाकर पीनेसे कफज शूल और यकृत्क्षय-जन्य दशमूलाजमोदे च शुण्ठी शीताङ्गनाशनम् ॥ शूल तुरन्त नष्ट हो जाता है।
। बिजौ रे नीबूकी जड़, चिरायता, पीपलामूल, (५०२६) मातुलुङ्गरसादियोगः (६) । देवदारु, दशमूलकी प्रत्येक ओषधि, अनमोद और
(बृ. मा. | हिक्कावासा.) साठ समान भाग लेकर क्वाथ बनावें । मधुसौवर्चलोपेतं मातुलुङ्गरस पिबेत् ।
यह क्याथ शीताङ्ग सन्निपातको नष्ट हिका? मधुना लियाच्छुण्ठीधात्रीकणान्वितम् ।।। करता है ।
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